गुरुवार, 20 जून 2013

उसकी बात वह ही जाने ......

उसकी बात वह ही जाने ......

सर्वत्र तबाही का मंज़र है । भक्त '' बचाओ बचाओ '' चिल्ला रहे हैं । बार - बार उपरवाले को याद कर रहे हैं । सुरक्षित बचने की प्रार्थनाएं की जा रही हैं । भगवान् ने अपना घर सुरक्षित बचा लिया । मैं सोच रही हूँ की अगर भगवान् अपने  घर को भी न बचा पाते तो क्या होता ? लोग भगवान् के भरोसे आए थे और भगवान् ने अपने हाथ खड़े कर लिए । आस्था, विश्वास, भक्ति एक झटके में दफ़न हो गयी । भगवान् तो अपने पुजारियों को तक नहीं निकाल पाए जो भगवान् के डायरेक्ट संपर्क में रहते हैं । ऐसे में आम भक्तों को कौन पूछे ?

आजकल तीर्थयात्रा में जाना मतलब उसका बुलावा, सुरक्षित बच कर वापिस आ गए मतलब  उसकी कृपा , मर गए तो उसकी मर्जी और सीधा मोक्ष । तीर्थयात्रा ना हो गयी अंतिम यात्रा हो गयी कि हर समय अपना कफ़न - दफ़न तैयार किये रहो ।

इतना बड़ा हादसा हो जाने के बाद भी भक्त लोग शायद ही यह बात कहें, लेकिन मौत के मुंह से लौट कर आए एक टैक्सी वाले ने ज़रूर यह घोषणा कर दी कि ''कान पकड़ता हूँ अब कभी चार - धाम नहीं जाऊँगा ''।

उधर नैनीताल के होटल व्यवसाई बहुत दुखी हैं । वे मीडिया से खासे नाराज़ हैं । मीडिया बार - बार यह कह रहा है कि पूरा उत्तराखंड तबाह हो गया । उनका कहना है कि नैनीताल सही सलामत है । वैसा ही जगमगाता, चमचमाता खड़ा है, तो उत्तराखंड कैसे तबाह हो गया ? नैनीताल उत्तराखंड नहीं है । वह धार्मिक स्थल भी नहीं है । वह बाज़ार है और बाज़ार भला कैसे तबाह हो सकता है ? बाज़ार को कभी कुछ नहीं होता । इसके भगवान् यहाँ के बड़े - बड़े होटल वाले हैं जो इसे कुछ नहीं होने देंगे । साथियों नैनीताल आइये, घूमिये, फिरिए, मौज करिए, बोटिंग करिए, खूब शॉपिंग करिए । जो जी चाहे वह करिए क्यूंकि नैनीताल सिर्फ नैनीताल है, उत्तराखंड नही है ।