शुक्रवार, 10 मई 2013

कुछ तो बक रे !

ओ 
बकरे !
इस पर तू भी
कुछ तो 
बक रे !

मियाँ आओ -
तनिक
मिमयाओ ।

कौन सा
फूंका
मन्त्र ?
कौन सा
किया
तंत्र ?

गर्दन पर छुरी
चली  
या छुरी पर
गर्दन रखी  ?

हलाल हुए
या मालामाल
हुए ?

क्या नज़र
उतारी ?
पटरी
पर आई 
क्या 
रेलगाड़ी ?


रिश्तों के
निकले 
कच्चे धागे
क्या 
बल हार गया
बला के आगे ?

बकरे !
कुछ तो
बक रे !









 











 

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (11-05-2013) क्योंकि मैं स्त्री थी ( चर्चा मंच- 1241) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. नहीं बकूंगा हट रे
    खोलता है पोल मेरी
    जरा इधर कू डट रे

    मामा को बुलाता हूं
    लगाएगा डपट रे
    जोर दार पड़ेगी डांट
    अब तू खिसक ले

    बक रे मत बकियो
    अब तू अटक रे
    सबकी नजरों में
    रहा अब तू खटक रे

    माल खाया जितना
    गिराया अधिक सटक रे
    ज्‍यादा बक बका मत कर
    अब तू जल्‍दी से मटक ले

    देखना मत पलट के
    ओ बक रे बकरे
    काहे को रहा इधर
    अब तू तक रे

    बकरे कुछ और तो
    अब फिर से बक रे
    मार रहे हैं क्‍या हम
    अब तक समझता है क्‍या
    झक रे झकाझक रे।

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  3. बक रा
    अब क्या करा?

    मार के कर दिया अधमरा। :)

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  4. गर्दन पर छुरी
    चली
    या छुरी पर
    गर्दन रखी ?

    अब बेचारा बकरा क्या बके?:)

    बहुत सटाक से हंटर मारा.

    रामराम

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  5. सुन्दर बकरा क्या बकेगा. उसे तो हलाल होना है.

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  6. मुझे लगता है कि इस रचना के साथ संदर्भ का कोई लिंक या खबर की कतरन लगाते तो बेहतर होता. कारण यह कि यह सामयिक है, तो लोगों को रिलेट करने में कोई समस्या नहीं आएगी. परंतु कुछ समय पश्चात यह शानदार-धारदार रचना संदर्भ-विहीन सी, अस्पष्ट सी लग सकती है.

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  7. बकरे तो शादी के दिन ही हलाल
    हो गया अब क्या बकेगा ...

    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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