बुधवार, 29 मई 2013

ब्रेकिंग न्यूज़

अचानक आज क्या हो गया कि ...
 
पहली बार
कुत्ते का बर्तन 
खाली रह गया । 
दरवाज़े से गाय
भूखी चली गयी । 
चिड़ियों को चावल 
नहीं बिखेरा किसी ने । 
बिल्ली के पंजे में 
छटपटाता दम तोड़ गया 
कबूतर । 
 
आज ये सहसा क्या हो गया कि ....
 
दाल में छौंक लगने की 
आवाज़ नहीं आई । 
कपडे तारों से उतारे जाने की 
राह देखते रहे ।
खून चूसते रहे मच्छर 
बेधड़क होकर, 
लाल हो गया
मासूम बच्चों का जिस्म । 
मच्छरदानी तानने वाले हाथ 
उठे ही नहीं आज । 
सच मानिए, आज पहली बार 
 इस घर के इतिहास में
कामवाली बाई
बिना चाय के चली गयी । 
यह ब्रेकिंग न्यूज़ 
कहीं फ्लेश नहीं हुई क्या ?
कि  इसी दुनिया के किसी कोने में
कहीं एक औरत उदास बैठी है । [ मास्टरनी की डायरी से ]

शनिवार, 25 मई 2013

कुछ तो लोग कहेंगे ....लोगों का काम है कहना ...

कुछ तो लोग कहेंगे ....लोगों का काम है कहना ....मैडम ....शुक्र कीजिये कि लोग कुछ ही कहते हैं ...क्यूंकि कहना तो बहुत कुछ चाहिए लेकिन भारतीय लोग शरीफ होते हैं जो कुछ कहकर ही संतुष्ट हो जाते हैं
  
सोते हैं, बिछाते हैं, खाते हैं, पीते हैं, ओढ़ते हैं । कभी देखा है जब बच्चे क्रिकेट खेलते हैं ? 

कपड़े की ढेर सारी बौलें बन जाती हैं । माँ गाली देकर भी सिलती जाती है । 

मुंगरी बनी बैट, पेड़ की टहनियों से बने विकेट ।  

छोटे - छोटे हाथों से आतीं हैं बड़ी बड़ी अपीलें । टीम में शामिल होने की दी जाती हैं दलीलें ।  

स्कूल से चुरा कर लाई गयी चॉक । पूरा करती है यह शौक ।  संकरी सी गली बन जती है पिच ।  सड़क के दोनों और बाउंड्री जाती है खिंच । मंदिर को पार करे तो चौका, मस्जिद को पार करे तो छक्का ।  

कभी टूटते हैं कारों के शीशे । कभी चकनाचूर होते हैं खिडकियों के कांच । फिर देखो कैसे भागे फिरते हैं ये टीम इण्डिया के जांबाज । 

पसीने से भीग जाती है पैबंद लगी कमीज़ । मिट्टी से सन जाती है खेल की हर चीज़ ।  

पोछ लेते हैं आस्तीनों से पसीना, बच्चे फिक्सिंग के वास्ते तौलिया नहीं रखते हैं । 

गला सूख जाए तो नल के नीचे मुंह लगा लेते हैं, इनके रास्ते में ठंडी बोतलों के झाग नहीं उड़ते हैं । 

लड़कियों की फजीहत नहीं करते । खुद ही नाच - गा कर झूम लेते हैं ।

मन में चीअर भरा हो जिनके, चारों दिशाओं में वे स्वयं ही घूम लेते हैं 
 
इधर टीम है, पर टाम  नहीं । बुकियों का कोई काम नहीं । 

उधर भरे दलाल हैं । इधर धरती के लाल हैं । 

दर्शक नहीं प्रायोजक नहीं, आयोजक नहीं, आलोचक नहीं ।  

खरीदार नहीं, बाज़ार नहीं । खेल - बस खेल है, व्यापार नहीं ।

अखबारों में ज़िक्र नहीं ।  इनको कोई फ़िक्र नहीं ।

यह  खेल किसी आई पी एल से कम नहीं । बस खेलना आता है इनको, कोई देखे या ना देखे , इनको कोई गम नहीं ।     

मंगलवार, 21 मई 2013

श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?

श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ? 
 
आ रही सट्टालय से पुकार 
है बुकी गरजता बार - बार 
कर फिक्सिंग तू बटोर नोट अपार  
सब कुछ मिले है तुरंत - फुरंत ।
 
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?  
 
फिक्सिंग स्पोटों में भर गया रंग 
धन लेकर आ पहुंचा भदन्त 
मुदित, प्रमुदित, पुलकित अंग - अंग 
भरे चोर देश में किन्तु अनंत । 
 
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
 
भर रही कॉलगर्ल इधर तान 
दलाल की सूख रही इधर जान 
है रन और धन का विधान 
होटल में आई है छिपते छिपंत । 
 
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
 
कर दे अब तू अश्रुपात 
आंसुओं से लगा दे आग 
ऐ रन क्षेत्र में लगे दाग, जाग 
बतला अपने अनुभव अनंत । 
 
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
 
भज्जी पाजी के शिकार संत 
ऐ मुर्ग, सुरा चढ़ा के आकंठ 
कर नाच इस कदर प्रचंड, 
पर सबसे पहले कर खिड़कियाँ बंद 
 
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
 
अब कोक अथवा पेप्सी के स्टंट नहीं
कर लो कुछ भी, पर स्टिंग नहीं
है बॉल बंधी अब स्वच्छंद नहीं 
फिर आई पी एल में जाए कौन हन्त ?
 
श्रीसंतों का कैसा हो बसंत ?
 
 

शुक्रवार, 10 मई 2013

कुछ तो बक रे !

ओ 
बकरे !
इस पर तू भी
कुछ तो 
बक रे !

मियाँ आओ -
तनिक
मिमयाओ ।

कौन सा
फूंका
मन्त्र ?
कौन सा
किया
तंत्र ?

गर्दन पर छुरी
चली  
या छुरी पर
गर्दन रखी  ?

हलाल हुए
या मालामाल
हुए ?

क्या नज़र
उतारी ?
पटरी
पर आई 
क्या 
रेलगाड़ी ?


रिश्तों के
निकले 
कच्चे धागे
क्या 
बल हार गया
बला के आगे ?

बकरे !
कुछ तो
बक रे !









 











 

 

मामा - मामा भूख लगी..........

 डिस्क्लेमर ........इसका रेल, बस या हवाईजाहज .... किसी भी घोटाले से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है । 

जैसा राजा वैसी प्रजा । जैसे छात्र वैसे प्रश्न ।

प्रश्न ......निम्न पंक्तियों की व्याख्या करो । 

मामा - मामा भूख लगी, खा ले बेटा मूंगफली । मूंगफली में दाना नहीं, हम तुम्हारे मामा नहीं ।

व्याख्या .....प्रस्तुत पंक्तियों में एक मामा  है दूसरा उसका भांजा ।

इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि भांजा भूख लगने पर अपनी माँ को याद नहीं करता । वह खाने के बारे में सिर्फ मामा से बात करता था ।

माँ पोषक तत्वों से भरपूर खाना देती थी, जिसमे बेटे को स्वाद नहीं आता था । इसके विपरीत मामा तर माल खाया करता था, जिसे देख कर भांजे का जी ललचाया करता था ।
 
मामा एक हाथ में काजू, बादाम रखता था और दूसरे हाथ में मूंगफली, वह भी बिना दानों की । पब्लिक और भांजे को दिखने के लिए वह बिना दानों वाली मूंगफली खाता था ।

भांजा धोखाधड़ी की शिकायत करता था तो वह फ़ौरन ''हम तुम्हारे मामा नहीं '' कहकर भांजे से नाता तोड़ लेता था ।

चन्दा मामा दूर के ........

प्रस्तुत पंक्तियों में कहा गया है कि चंद मामा लोग मालामाल होते ही अपने रिश्तेदारों ख़ास तौर से भांजों से दूरी बना लेते था । कवि मामा के द्वारा पैदा की गयी इस दूरी की तुलना चाँद से कर रहा है ।

रिश्तेदारों से दूर होते ही मामा के घर में तरह तरह के पकवान बनने लगते हैं । इन पकवानों में सबसे प्रमुख पकवान पुआ होता है ।

इन पुओं से आती खुशबू दूर - दूर तक फ़ैल जाती थी । पुओं से आने वाली इस सुगंध को सूंघकर भांजों के नथुने फड़कने लगते थे । वे बैचैन होकर माँ से मामा के पास जाने की सिफारिश लगवाया करते थे । सभी रिश्तेदारों के पास किसी ना किसी प्रकार का पास उपलब्ध था । 

मामा के पास उड़नखटोले का मंत्रालय था । मंत्रालय पी. पी. पी. अर्थात  पैसा, प्रमोशन, पावर मोड़ में चल रहा था । काफी मलाईदार मंत्रालय था ।  इसमें दूध - मलाई खाने की संभावना काफी प्रबल थी । दूध - मलाई के नाम से भांजों की लार टपक जाती थी ।

भांजा, मामा को सच्चे दिल से प्यार करता था जबकि मामा, भांजे के साथ बहुत पक्षपात करता था । 

मामा खुद तो थाली में खाता था वह भी भर - भर के । भांजे को प्यालियों में मिलता था । प्यालियाँ काफी कच्ची होती थीं । इन प्यालियों में उड़नखटोले के यात्रियों को भोजन परोसा जाता था । इन्हें चीन से मंगवाया जाता था । ये पकड़ते ही टूट जातीं थीं ।

मामा को उड़नखटोले का खाना खाने की आदत थी । मामा का हाजमा दुरुस्त था । उसका पेट कभी खराब नहीं होता था । इसके विपरीत भांजे का हाजमा घर का खाना  खाने के कारण काफी कमज़ोर था । 

भांजा सोचता था अब तो प्याली टूट गयी अब मामा के साथ खाने को मिलगा या मामा जैसी थाली में खाने को मिलेगा । लेकिन मामा नई प्याली ले आता था और ताली बजा बजा के भांजे का मज़ाक उड़ाता था । 

मामा का मुन्ने को मनाने का तरीका भी बहुत ही विचित्र हुआ करता था ।'' मुन्ने को मनाएंगे , दूध मलाई खाएंगे '' इन पंक्तियों में'' खिलाएंगे'' के स्थान पर'' खाएंगे'' आया है जिससे यह स्पष्ट होता है कि मामा  दूध - मलाई खुद खाता था और कहता था कि रूठे हुए मुन्ने को ऐसे ही मनाया जाता है । ऐसा लगता है कि मामा के मुंह पर लगी हुई मलाई को देखकर मुन्ना खुश हो जाता होगा कि वह भी बड़ा होकर इसी प्रकार दूध - मलाई खाया करेगा । 

 उड़नखटोला मंत्रालय में नाना प्रकार के खेल खेले जाते थे ।  इन खेलों में आंखमिचौली का खेल सर्वप्रमुख था । जिसका प्रमोशन लिस्ट में नाम होता था,  उसकी जगह किसी और का प्रमोशन हो जाता था । प्रमोशन के लिए कम पैसा लाने वालों के साथ छुप्पन  - छुपाई का खेल खेल जाता था । धीरे - धीरे भांजा इस प्रकार के खेलों में पारंगत होता गया ।

आंखमिचौली का खेल ईमानदारी से ना खेला जाए तो बड़ी गड़बड़ होने की संभावना प्रबल हो जाती है । सबकी आँखें खुली रहें और एक की आँख बंद रहे तो खेल लम्बे समय तक चलता है ।

तीसरी  व्याख्या .......

चन्दा मामा से प्यारा मेरा मामा .......प्रस्तुत पंक्तियों से स्पस्ट होता है कि लडकियां बचपन से ही चतुर - चालाक होती हैं । मीठी - मीठी बातें करके मामा को पटाती रहती हैं । वे दहेज़ के माध्यम से माल मत्ता लेती हैं जिससे किसी को शक नहीं होता । इससे साबित होता है कि इस संसार में जिसकी नेचुरल इंस्टिंक्ट तेज नहीं होती वह अननेचुरल स्टिंग में पकड़ा जा सकता है ।