रविवार, 30 दिसंबर 2012

सन दो हज़ार तेरह में ........

सन दो हज़ार तेरह में ........

सजा मिले ........

गुंडों को, मवाली को, काली पट्टी वाली गाड़ी को, अफज़ल गुरु को, कांडा को, कलमाड़ी को, जिसमें तिनका मिले हर उस दाड़ी को |

वापिस लौटे .......

विदेशों से काल धन, टीम अन्ना का दम - ख़म, रीटेल में एफ.डी.आई., सरकारी कब्ज़े से सी.बी.आई., पूरी ताकत से आर.टी.आई.|

भय ना हो ........

गैस के सिलेंडर का, माया के कलेंडर का, अभिजीत को क्रीम पाउडर का, शीला को जंतर - मंतर का, कार वालों को ट्रेफिक जाम का, मलाला को तालिबान का, बैसाखियों को सलमान का |

भय हो .......

बदमाशों को सख्त कानून का, श्रद्धालुओं को भगवान् का, नेताओं को फिसलती ज़ुबान का, बलात्कारियों को शमशान का, फांसी सरेआम का, भ्रष्टों को केजरी के तूफ़ान का, बेनी को अपनी ज़ुबान का |

जांच हो .........

साधारण अध्यक्ष की, असाधारण दामाद की, कोयले के कालों की, ज़मीन के घोटालों की, रातों रात हुए मालामालों की ।

बंद हो .......

ऊपरी कमाई, आन्दोलनकारियों की पिटाई, आचरण की बेहयाई, अपराधियों की मुंह छिपाई ।

बच्चे दूर हों .......

नोर्वे से, बोरवेल से, बस्तों के बोझ से, होमवर्क की ओवरडोज़ से, तरह - तरह के रियलिटी शोज़ से ।

ख़त्म हो ........

मौनियों के मौन, साइलेंस के ज़ोन, संसद में गतिरोध, दिखावे के विरोध, बदमाशों के हौसले, बार -बार कीमत बढाने के फैसले ।

बैन हो ..........

संसद में पोर्न साइट्स, न्यूज़ चैनल पे जुबानी फाइट्स, रेव नाइट्स, शीला मुन्नी वाले गाने, औरत का जिस्म भुनाने वाले, बड़े परदे पे गालियाँ, सिगरेट, शराब की प्यालियाँ ।


क्या हो नए साल में ......

भाई - भाई में हो प्यार, नामधारी ना ले बाज़ी मार, सत्यमेव जयते रहे, प्रेम की धारा बहते रहे । कोख में, रोड में, सड़क में, बस में, जहाँ कहीं भी हो, औरत सदा सुरक्षित रहे ।


बुधवार, 26 दिसंबर 2012

तुम बातों में गालियां, और गालियों में बात करते हो

तुम बातों में गालियां, और गालियों में बात करते हो 
राखी का अपमान करके खुश होते हो, माँ की कोख पर लात जड़ते हो ।

तुम्हारी .........

हर बात में
घूंसे में, लात में
हंसी में, मज़ाक में
दुःख में, विलाप में
मान में, अपमान में
ट्रैफिक के जाम में
जान में, पहचान में
दोस्ती में, दुश्मनी में
बिगड़ी में, बनी में 
प्यार में, इकरार में
घर में, बाहर में
जीत में, हार में
स्कूटर में, कार में
गुस्से में, मार में 
नशे में, होश में
जोश में, रोष में 
गलियों में, चौबारों में
चबूतरों में, चौबारों में
रिश्तों में, नातों में
चुप्पी में, बातों में
धर्म में, जात में
पुण्य में, पाप में
ठन्डे में, गर्मी में
प्रेम में, नरमी में
झूठों में, सच्चों में
बूढों में, बच्चों में
नौकरी में, कारोबार में
नकद में, उधार में .......

तुम्हारी हर बात
माँ  - बहिन के
बलात्कार से शुरू होकर
बलात्कार पर ख़त्म होती है
फिर एक बलात्कार पर आज
दुनिया इस तरह क्यूँ
होश खोती है ?

रविवार, 2 दिसंबर 2012

.यातायात पखवाड़ा मनाने से पहले और यातायात पखवाडा मनाने के बाद .....

आज हल्द्वानी शहर की कोतवाली में यातायात पखवाड़े का आयोजन किया गया, जिसमे शहर के कवियों से यातायात के विषय में जागरूकता का संचार करने के लिए कहा गया । अपनी आदतानुसार हम जागरूकता फिलाने के बजाय व्यंग्य बाण छोड़ आए ।

हल्द्वानी .............यातायात पखवाड़ा मनाने से पहले और यातायात पखवाडा मनाने के बाद .....

इधर एक मेन बाज़ार है
जिधर चलना दुश्वार है
जिसे भी देखो
हवा के घोड़े पर सवार है ।
जीत गए जो घुसने में किसी तरह
निकलने में निश्चित हार है ।
इधर कंधे से कंधे छिलेंगे
पड़ोसी, दोस्त, रिश्तेदार मिलेंगे
कान वाले बहरों के साथ
आँख वाले अंधे फ्री मिलेंगे ।

ये जो बाज़ार में
तैरते हुए ठेले हैं
ऊँची दुकानों के फीके पकवानों से
पैदा हुए झमेले हैं ।
इनको गौर से देखो तो
सिर चकरा जाता है
कभी सारे बाज़ार में दिखाई देते हैं ठेले ही ठेले 
तो कभी सारा बाज़ार
इन ठेलों में उतर आता है ।

इनके कारण आजकल
यमराज असहाय हैं
ये मौत का दूजा पर्याय हैं
बेधड़क ये सड़क पर
यूँ धड़धड़ाते हैं
इनकी वजह से हम
नींद में भी 'बचाओ बचाओ'
बड़बड़ाते हैं ।
शहर के अन्दर ये
कोढ़ पर खाज के समान हैं ।
जनसँख्या कम करने में साथियों
इन डंपरों का बम्पर योगदान है ।

ना हेलमेट, ना लाइसेंस
न कॉमनसेंस, ना रोड सेंस
बाइक पर सवार ये स्टंटमैन 
शिकार इनका कॉमनमैन
जब इनका टूटे कहर
काँप उठे सारा शहर ।
सबसे आगे मैं ही निकलूँ
मची हुई है रेलम पेल
बिगड़े दिल शहजादे
इन पर कौन कसे नकेल ।  

इस शहर की एक
लाइलाज बीमारी है
जिसका नाम अतिक्रमणकारी है ।
हो कोई भी सरकार
इनके आगे हारी है ।
दुकानें अन्दर कम
बाहर ज्यादा दिखती हैं
हो जाए अगर कोई त्यौहार
पैदल चलने की जगह नहीं बचती है ।
सड़क - सड़क नहीं
लगती इनकी बपौती है
इन पर काबू पाना
सबसे बड़ी चुनौती है ।

यहाँ ....................

कालू सैयद चौराहे का नज़ारा
अन्दर अमीर बाहर गरीब
भीख मांग करें गुज़ारा ।
मंगल पड़ाव, अमंगलकारी
पीलीकोठी हल्की, वाहन भारी
रोड नैनीताल, निकलना मुहाल 
कालाढूंगी सड़क, जिया धड़क -धड़क
रेलवे बाज़ार, निकल जाओ तो चमत्कार
फंस गए मियाँ , रोड तिकोनिया
भोटिया पड़ाव, छात्रों से बच पाओ
छोटे लोग, बड़ी कार
बिन कार, जीवन बेकार
होर्डिंगों के बोझ से
हांफता शहर
लाल पट्टियों  के खौफ से
काँपता शहर

निकलो जिधर से भी शहर में
एक चीज़ आम मिलेगी
हर सड़क परेशान
हर गली जाम मिलेगी ।

सोमवार, 5 नवंबर 2012

ऐसे उगता है पैसों का पेड़ ........

ऐसे उगता है पैसों का पेड़ ........
 
जब
कोयले की खान से
हीरे निकलने लगते  हैं
दो पैर वाले
बैसाखियों के सहारे
चलने लगते हैं
पलक झपकते ही 
खेती की ज़मीन पर  
भवन खड़ा हो जाता है    
ठीक उसी मौसम में
एक विचित्र सा पेड़ 
उग जाता है । 
यही वह पेड़ है
जिस पर पैसे उगते हैं
इसके आगे बड़े - बड़ों के सर
श्रद्धा से झुकते हैं ।
आम आदमी की
महंगाई से पलीद हो गयी
मिट्टी में यह खूब
फलता - फूलता है
उसकी आँखों से बरसता पानी
सीधे इसकी जड़ों तक
पहुँचता है
चेहरे पर जब रोज़ उसके
हवाइयां उड़ने लग जाती हैं
वही हवा इसके
बढ़ने के बहुत काम आती है ।
 
उसकी
छटांक भर उम्मीद की
रोशनी से यह
सालों - साल जिंदा रहता है
देश - काल - परिस्थिति
के अनुसार अपना रंग बदल लेता है 
 
इसकी छाया से बड़ी
इसकी माया होती है
इसको पनपने के लिए
ख़ास आबोहवा की
दरकार होती है
उसी के आँगन में पनपता है
जिसकी सरकार होती है ।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

हल्द्वानी में ........

सुना है आज से फार्मूला वन रेस शुरू होने जा रही है .....इसमें कौन सी बड़ी बात है ? मेरे शहर में तो रोज़ ही इस तरह के मुकाबले देखने को मिलते हैं ।हाल ही में  एक कार वाले से टक्कर खाकर यह कविता उत्पन्न हुई है ।
 
हल्द्वानी में ........
 
ज़िंदगी हर कदम 
एक नई जंग है 
बाज़ार में सड़कें 
बेहद तंग हैं 
खरीदारी के अनेक रंग हैं 
कभी कभी लगता है जैसे 
सबने पी रखी भंग है ।
 
हल्द्वानी के  ...........
 
ये भाई, ज़रा ना देख के चलें 
आगे भी नहीं, पीछे भी नहीं 
दाएं भी नहीं, बाएँ भी नहीं 
ऊपर भी नहीं, नीचे भी नहीं 
ये भाई ...........................
 
यहाँ
 
सड़क , सड़क नहीं 
फार्मूला वन रेस का ट्रेक है 
जो सही दिशा में चलता है 
उसी पर होता अटैक है ।
 
यहाँ 
 
हेलमेट लगाना
फैशन के विरुद्ध है 
कट गया चालान कभी तो 
महाभारत का युद्ध है ।
 
यहाँ
 
माँ, बहिन की गाली  है  
एक हाथ से बजती ताली है 
इंश्योरेंस, लाइसेंस जाली हैं 
पटरी  पर आएगी कभी व्यवस्था 
ये पुलाव तो ख्याली है ।
 
यहाँ
 
हल्की सड़क पर 
वाहन भारी है 
बीच सड़क पर ही 
निभती यारी है 
और
मना हो जहाँ पर 
वहीं पार्किंग की बीमारी है ।
 
यहाँ
 
हर नियम का तोड़ है 
हर गली में एक मोड़ है 
निकल जाऊं मैं आगे किसी तरह से 
मची हुई एक होड़ है।
 
यहाँ 
 
जो जाम है 
आम आदमी से भी 
ज्यादा आम है 
और जिसके पास है कार 
बस उसी का सम्मान है ।
 
यहाँ 
 
फोन पर बेखटके बतियाते हैं 
चलते - चलते झटके से 
ऑटो रुक जाते हैं 
क्या कहना इनकी हिम्मत का 
अपनी गल्ती पर  
सामने वाले को गरियाते हैं।
 
ये 
 
मेरे शहर वाले हैं 
रोके से भी नहीं रुकने वाले हैं 
जंग - ऐ ट्रैफिक के मतवाले हैं 
परेशान इनसे सबसे ज्यादा 
ट्रैफिक और पुलिस वाले हैं ।
 
 
अरे ओ ........
 
सेल फोन के दीवानों 
रफ़्तार के परवानों 
नशे में चूर मस्तानों 
तुमने बसाना था 
यंगिस्तान 
बसा दिया
कब्रिस्तान ।
 
आज बेशक मेरी यह बात तुम्हें
अखरती होगी 
लेकिन सोचो
तुम्हारी अर्थी को देख
जिसने तुम्हें जन्म दिया 
उस माँ पर क्या गुज़रती होगी ?
 
 
 
 
 
 
 
 

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

जाग मास्टर जाग अब तेरी शामत आई.....

आजकल हम मास्टरों की ट्रेंनिंग चल रही है, जिसका लब्बो लुआब मेरी समझ से यह निकलता है .....

जाग मास्टर जाग 
अब तेरी शामत आई |

मुर्गा बहुत बनाया तुमने 
बात - बे -बात हड़काया तुमने 
कान खींचे, धौल जमाई 
प्रश्न पूछने पर की पिटाई 
खुद को समझा तुमने खुदा 
डंडे के बल पाई खुदाई 

अब बैठेंगे कुर्सी पर बच्चे 
तुझको मिलेगी फटी चटाई  
जाग मास्टर जाग अब तेरी शामत आई |

खेल - खेल में अब शिक्षा होगी 
वही पढ़ेगा बच्चा जो उसकी इच्छा होगी 
स्कूल का ऐसा स्वरुप होगा 
तब आएगा बच्चा, जब उसका मूड होगा 
बैठेगा घर में वह ठाठ से 
टीचर की परीक्षा होगी 
 
फ़ेल हुआ अगर गलती से भी तू 
तेरे वेतन से होगी भरपाई |
 जाग मास्टर जाग अब तेरी शामत आई |

मन में अब यह ठान ले 
इन बच्चों को ईश्वर मान ले 
मंदिर, मस्जिद, चर्च ना गुरुद्वारा 
तेरा बस एक ही तारणहारा 
रिश्वत देकर उसे पटा ले 
उसके आगे शीश झुका ले 

छिपी है इसमें तेरी भलाई 
जाग मास्टर जाग अब तेरी शामत आई |

शनिवार, 28 जुलाई 2012

सुगम के माने सौ - सौ ग़म, यह मान लीजिये




साथियों, इन दिनों मेरे शिक्षा विभाग में ट्रांसफर को लेकर बड़ी उथल पुथल मची हुई है, सुगम और दुर्गम को लेकर भारी बमचक मची है |  दुर्गम में फंसे हुए अध्यापक सुगम में आने को बेकरार हैं और सुगम में जमे हुए अध्यापक दुर्गम से बचने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं | इसी को ध्यान में रखते हुए एक कविता प्रस्तुत है | 

दुर्गम ..........

साफ़ - सुथरी आबो - हवा 
मीठा - मीठा ठंडा पानी 
शुद्ध है दूध दही यहाँ 
लौट के आए गई जवानी |

घर - गृहस्थी का जंजाल नहीं 
बीवी - बच्चों का मायाजाल नहीं 
सब्जी लाने को मना कर दे 
ऐसा माई का कोई लाल नहीं |

स्नेह प्रेम और मान मिलेगा 
आँखों में सम्मान मिलेगा 
आप पढ़ा रहे उनके बच्चे 
हर दिल में यह एहसान मिलेगा |

अफसर की फटकार नहीं 
छापों की भरमार नहीं 
छुट्टी को अर्ज़ी की दरकार नहीं 
एक दूजे के के करने में साइन 
हम जैसा फ़नकार नहीं |

दूर पहाड़ों पर हम 
चढ़ते और उतरते हैं 
हर बीमारी को अपनी 
मुट्ठी में रखते हैं 
और जिस घर से जा गुज़रते हैं 
डिनर के बाद ही उठते हैं |

यहाँ पढना क्या पढ़ाना क्या 
जोड़ क्या घटना क्या 
कहाँ की घंटी वादन कैसा 
धेले भर का खर्च नहीं 
खाते में पूरा पैसा |

सुगम .......................

मीडिया, पत्रकार, रिपोर्टर 
एक टीचर हज़ार नज़र 
अफसरों का सुलभ शौचालय 
पिघलता नहीं कभी उनकी 
शिकायतों का हिमालय |

हर आहट पर दिल 
काँपता ज़रूर है 
कुत्ता भी गुज़रे सड़क से 
एक बार झांकता ज़रूर है |

कोई सफ़ेद गाड़ी 
दूर से भी दे दिखाई 
डाउन हो जाए शुगर 
ब्लड  प्रेशर हाई |

अभिभावक हैं अफसर 
हर छुट्टी पर रखें नज़र 
फ्रेंच की बात तो दूर रही 
कैजुअल पर भी टेढ़ी नज़र |

पाई - पाई का हिसाब दीजिये 
एक दिन की सौ डाक दीजिये 
राजमा की जगह छोले 
बच्चा कापी किताब ना खोले 
दो - दूनी चार ना बोले 
तब भी आप ही जवाब दीजिये |

रोज़ - रोज़ नित नए प्रशिक्षण 
सुबह से शाम की कार्यशाला 
सिवाय पढ़ाने के बच्चों को 
बाकी सब है कर डाला |

हर साल ट्रांसफर की तलवार 
सिर में लटकती है 
सुगम की नौकरी साथियों  
सबकी आंख में खटकती है |

अतः ........................

सुगम के माने सौ - सौ ग़म, यह मान लीजिये 
दुर्गम माने दूर हैं गम, यह  जान लीजिये | 

     

गुरुवार, 31 मई 2012

आई. पी. एल. - यह खेल अपने को हज़म नहीं होता ..................

आई. पी. एल. ........यह खेल अपने को हज़म नहीं होता ....................

यह खेल अपने को हज़म नहीं होता 
जीत जाए कोई तो खुशी नहीं होती 
किसी के हारने पर ग़म नहीं होता |

इसमें ............

मिर्च मसाले हैं 
ग्लैमर के तड़के डाले हैं 
दर्शक ठुमकों के मतवाले हैं 
खेल देखना छोड़ कर 
चीयर गर्ल्स पर नज़र डाले हैं |

इसमें ...............

काले धन की बरसात है 
थप्पड़, घूंसे, छेड़खानी 
गाली - गलौच और लात है 
हर मैच के बाद 
शराब, शबाब और 
नशे में डूबी रात है |

इसमें ...................

फ़िल्मी  हस्तियाँ छाई हैं 
धनकुबेरों  की बन आई है 
खेल से इनका बस इतना ही लेना 
जब हुए नीलाम खिलाड़ी 
तब इनकी अंधी कमाई है |

इसमें .................

सट्टेबाजी, धोखेबाजी 
जालसाज़ी  
सिक्स भी यहाँ फिक्स है 
इस पूरे कॉकटेल में 
खेल की मात्रा कम हो गई 
पैसा ज्यादा मिक्स है |

इसको .....................

एक खेल कहना 
खेल का अपमान है 
पावर, पैसा, पाप 
आई. पी. एल. का फुल्फोर्म है |

साथियों .........................

खेल यह ऐसा आया 
कौन अपना है कौन पराया 
आज तक समझ ना आया |
किस चौके पर खुश हो जाऊं ?
किस छक्के पर नाचूँ, गाऊं ?
किस विकेट पर ताली बजाऊं ?
किसकी जीत पर तिरंगा लहराऊं ?
भारतवासी होने पर इतराऊं ?
टीमों की लम्बी लिस्ट में 
किसको रखूं याद 
किसको भूल जाऊं ?

देख के ऐसा खेल दिल मेरा रोता है 
यह खेल अपने को हज़म नहीं होता है 
जीत जाए कोई तो खुशी नहीं होती 
किसी के हारने पर ग़म नहीं होता |




शुक्रवार, 9 मार्च 2012

नाम एक है लेकिन फर्क देखिये ......

नाम एक है लेकिन फर्क देखिये 
किसका बेडा पार हुआ ,
किसका हुआ है गर्क देखिये  .......

पहले के लिए .............

टीम की करारी हार 
शर्मनाक पराजय 
ख़राब प्रदर्शन 
के कारण 
संन्यास की घड़ी है |

दूसरे के लिए ...........
करारी हार 
शर्मनाक पराजय 
ख़राब प्रदर्शन 
के कारण 
पूरी टीम 
संन्यास लेने 
को खड़ी है |



गुरुवार, 8 मार्च 2012

क्यूँ हार गए खंडूरी जी ......एक विश्लेषण

ना होते अगर ज़रूरी 
श्रीमान खंडूरी 
तो जीत गए होते |
नाकाम होते षड्यंत्र, और  
विश्वासघाती, भितरघाती  
उनके पैरों तले बिछ गए होते | 

चलिए, उनके हारने की 
तह तक जाते हैं 
और हार के कारणों का 
पता लगाते हैं | 

वोटरों ने बताया कि 
ज़रूरी चीज़ों से वे 
बहुत ज्यादा घबराते हैं 
उनके सिर्फ़ ख्याल ही 
दिन रात रुला जाते हैं |

राशन, पानी, बिजली 
गैस की लम्बी कतार 
महंगाई की मार  
सोते - जागते सताते हैं |

इसीलिये अब 
गैर ज़रूरी चीज़ें 
हमें भाने लगी हैं 
मॉल, मोबाइल,  
बर्गर पीज़ा की दुनिया 
रास आने लगी हैं |

हाईकमान 
के गलत निकले अनुमान 
चीज़ ज़रूरी हो तो 
मन को अच्छी नहीं लगती हैं |
और बैठक कोई भी हो, 
सजावटी, नकली और बेकार 
की वस्तुओं से ही सजती है | 





 

बुधवार, 7 मार्च 2012

चुनाव परिणाम आने के पश्चात् कुछ घिसे पिटे बयान.......

चुनाव परिणाम आने के पश्चात् कुछ घिसे पिटे बयान.......

हमने अपनी हार स्वीकार कर ली है ....

इसके अलावा आपके पास 
बाकी कोई चारा नहीं था 
क्यूंकि 
आपके सिर पे करारी हार 
उनके गले फूलों का 
हार सजा था ..........
 

 हम हार के कारणों का मंथन करेंगे .....
 
हम
हार के कारणों का
मंथन कर रहे हैं
विष ही विष निकल रहा है
चारों ओर से
पी जाए जो फिर
आँख मूँद कर, 
उस
शिव शंकर को
ढूंढ रहे हैं .........

 
हम विपक्ष में बैठेंगे 
 
ऐसा कहना बहुत ज़रूरी है 
ये आपकी मजबूरी है 
क्यूंकि 
जब हार जाते हैं तो बस 
विपक्ष में ही बैठ पाते हैं 
 
 
हम जनता की सेवा करेंगे 
 
सच है यह सोलह आने 
क्यूंकि 
जब बैठे हों गद्दी में तो 
सेवा करने के क्या माने?
 
हम जनादेश का सम्मान करेंगे 
 
जनादेश का हम बहुत सम्मान करेंगे 
पूरे पांच साल तक कैसे 
भला इंतज़ार करेंगे ?
 भिडाएंगे ऐसी जुगत,करेंगे कुछ ऐसा, 
अगले ही साल चुनाव के हालात करेंगे.
 

रविवार, 29 जनवरी 2012

सारे तीज - त्यौहार एक तरफ, लोकतंत्र का त्यौहार एक तरफ ....

आहाहा ...कैसी अनुपम छटा है | अभूतपूर्व रौनक है | सारे तीज - त्यौहार एक तरफ, लोकतंत्र का त्यौहार एक तरफ | 
 
अभी कल ही की तो बात थी जब धड़ाधड़ करके जब सरकारी घोषणाएं होने लगी थीं, विधायक निधि आनन् - फानन खर्च होने लगी थी, टिकट के दावेदारों का दिल्ली आवागमन बढने लग गया था, कईयों ने हाईकमान के आँगन में ही डेरा जमा लिया था | हाईकमान किस - किस को टिकट दे? जिसको कार्यकर्ता समझते, वही उम्मीदवार निकल जाता | 

फिर एक दिन अचानक खबर आई कि कुछ लोग बागी हो गए, पता चल कि उन्हें टिकट नहीं मिला |  उन्होंने जनता को बताया कि पार्टी की नीतियां जनविरोधी होने के कारण उन्होंने पार्टी को छोड़ दिया है |  टिकट बंटवारे से पहले वे पार्टी को जनता का सच्चा हितैषी बताते नहीं थकते थे | असल बात यह थी कि लाखों रुपया पानी की तरह बहाए जाने के बावजूद हाईकमान ने उन्हें नज़रंदाज़ कर दिया | उनकी जगह किसी अजनबी को टिकट थमा दिया गया, वह  भी जनता  की राय  पर |  अब बताइए ये जनता कौन होती है राय देने वाली ? सो वे बागी होकर निर्दलीय हो गए | हाईकमान ने सदा की तरह पहले उनके बागी होने का इंतज़ार किया फिर उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण निष्कासित कर दिया | कुछ बागियों को लाल बत्ती का लालच देकर मना लिया गया |

उस एक दिन अखबार में हमने पढ़ा कि यही बागी पार्टियों के लिए संकट बन गए हैं, या सिरदर्द साबित हो रहे हैं |  सब जानते हैं  कि असली संकट तो बागियों के सामने होता है | चुनाव के सारे इंतजाम उन्हें स्वयं ही  करने पड़ते हैं | नोट से लेकर दारु तक | चुनाव चिन्ह से लेकर | समर्थकों का हुज़ूम इकठ्ठा करने में क्या क्या पापड बेलने पड़ते हैं वे पार्टी के झंडे तले लड़ रहे प्रत्याशी क्या जानें  ? | असली  संकट उनके सामने होता है कि उन्हें  हाईकमान को हर हाल में जतलाना होता है  कि उसके पास टिकट मिलने वाले से ज्यादा समर्थक हैं और हाईकमान ने उनका टिकट काटकर बहुत भारी गलती की है | शहर के सारे रिक्शे वालों, ठेले वालों, आस पड़ोस के बच्चों को जमा करना कोई हँसी खेल नहीं | सबके लिए खाना पीना चाय नाश्ता की व्यवस्था करना कोई आसान बात नहीं होता  | उन्हें जनता को यह बतानाहोता है कि उन्हें सत्ता का लालच नहीं है बल्कि वे तो समाज सेवा के लिए टिकट मांग  रहे थे और हाईकमान ने उन्हें अनदेखा कर दिया | समाजसेवा किसी टिकट की मोहताज़ नहीं | अब वे स्वयं लड़ेंगे |
 
फिर एक दिन अचानक शहर सुनसान हो गया | बड़े - बड़े चेहरों से पटा हुआ शहर मानो तेज़ आंधी - तूफ़ान के आने के कारण उजड़ सा गया हो | कद्दावर लोगों के पोस्टर ज़मींदोज़ हो गए | हमारे गाँव की गलियां गुलज़ार होने लगीं |शहरों से उखड़े हुए पोस्टर  गाँव के खम्बों और दीवारों पर चिपक गए | चुनाव आयोग की गाड़ियां गाँव देहात तक जाने की आवश्यकता नहीं समझतीं | अधिकारियों की रातों की नींद हराम होने लगी |  गाड़ियाँ छिनने और पैदल हो जाने का डर भ्रष्टाचार की तरह सर्वत्र व्याप्त हो गया | कर्मचारियों को ड्यूटी की आशंका से चैन उड़ गया | उस दिन से प्रदेश में अचार संहिता लग गई जिसका अर्थ यह हुआ कि आज के बाद से ना कोई अचार रहेगा ना किसी संहिता का पालन किया जाएगा  |

और उनका क्या कहना ?टिकट हासिल करने की होड़ में उन्होंने सबको पछाड़ दिया | टिकट वितरण के एक दिन पहिले दल बदलने के कारण पार्टी को उनके अन्दर बहुत संभावनाएं नज़र आईं |  उस एक दिन उनके जिस्म से जींस निकल कर साड़ी विराजमान हो गई | सिर से पल्लू था कि खिसकने की नाम ही नहीं ले रहा था | कितनी ही जोर की हवा चले या ठण्ड पड़े, वह अपनी जगह से टस  से मस नहीं हुआ | इस पूरा महीना उन्होंने बिना जींस - टॉप पहिने गुज़ार दिया | ये उनके लिए कठिन संघर्ष के दिन थे | जिस जींस को उन्होंने घर के बुजुर्गों के लाख टोकने पर भी विवाह के दूसरे ही दिन से पहिनना शुरू कर दिया था उसे आज दिल पर पत्थर रख कर बक्से में सबसे नीचे दफ़न कर दिया | राजनीति ने संस्कारों को पुनर्जीवित कर दिया |

गली मोहल्ले की खाली पड़ी दुकानों में चुनावी दफ्तर खुल गए | जिनमे  चंद प्रचारकनुमा लोगों के द्वारा वोटों के प्रतिशत और जातियों  के गणित के उलझे हुए समीकरणों को चाय की चुस्कियों के साथ हल किया जाने लगा | 

 एक दिन कुछ लोग लाउडस्पीकर ले लेकर सड़कों में घूमने लगे | उन्होंने हमें चीख -चीख कर बताया गया कि हम सब पिछले पाँच सालों से लगातार ठगे जा रहे हैं | हमें बेवकूफ बनाया जा रहा है | विकास कार्य ठप पड़ा है | हम बर्बादी  की कगार पर खड़े  हैं | वे हमारे सच्चे हितैषी की तरह प्राण - प्रण से हमें बचाने में  लगे हैं और हम हैं कि गुमराह पे गुमराह हुए जा रहे हैं |

अचानक हमें  जगह - जगह गन्दगी के ढेर दिखाई देने लगे, वही ढेर जिनको बनाने में हमारा योगदान कुछ कम नहीं था |  हम रात के अँधेरे में कूड़े को पोलीथीन में भर कर सड़क के किनारे डाल आते और दिन के उजाले में वहाँ से नाक बंद करके सरकार को कोसते हुए गुज़रते | बत्ती  के जाने का एहसास बहुत शिद्दत से होने लगा | दस मिनट बत्ती का जाना भी दस घंटों के बराबर लगने लगा  | अचानक लगने लगा है कि नल  में पानी भी नहीं है | हांलांकि हमें पता था कि पानी आने का समय निर्धारित है फिर भी यूँ लगा कि सर्वत्र सूखा पड़ा हुआ है | बिलकुल वैसे ही जैसे कि नई बहू के घर में आने के बाद ही बेटियों को इस बात का एहसास होता है की उनकी माँ कितनी सीधी है और उसके ऊपर बहू के द्वारा अत्याचार किया जा रहा है |

उन्होंने दलित बाहुल्य क्षेत्रों में बताया कि उनके विपक्षी उम्मीदवार दलित विरोधी हैं | मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में उसी उम्मीदवार को  मुस्लिम विरोधी साबित किया  | वे जिस - जिस क्षेत्र में गए, अपने विपक्षी दल को उस - उस क्षेत्र का विरोधी बताया | अच्छा हुआ जनता सिर्फ़ सुनती है सवाल नहीं पूछती |

उस एक दिन उनका वोट मांगने का अभियान विकास से शुरू हुआ और जातिवाद पर ख़त्म हुआ | देश की भलाई की बात का एक दूसरे की छीछालेदर और व्यक्तिगत आक्षेप पर जाकर समापन हुआ | गरीबों के उत्थान की बातें पिछले चुनाव के दौरान किये गए वायदों के गढ़े मुर्दे उखाड़ने पर ख़त्म हुई | रोटी - कपडा और मकान के वायदे एक दूसरे के चुनाव निशान की धज्जियां उड़ाने पर जाकर समाप्त  हुए | उस दिन से हम अपने पड़ोसी को दूसरी नज़र से देखने लगे | आज वह अचानक हमारे लिए पहाडी - देसी,  गढ़वाली, कुमांउनी, ठाकुर, ब्राह्मन, लम्बी धोती, छोटी धोती में बदल गए | दिलों में एकाएक दूरियां पैदा हो गई | मोहल्ले  का टेलर अशरफ, जो सूट सिलकर घर में दे जाता है उसे कितना ही बुरा भला कह दो, कभी बुरा नहीं मानता था, आज हमें मुसलमान लगने लगा  |

फिर एक दिन गाड़ियाँ ज़ब्त होने लगीं, अधिकारी बेचारे बिना गाड़ियों के ऐसे उदास  हो गए जैसे बिना बिना उपरी कमाई के सरकारी कर्मचारी  | कर्मचारी और अधिकारी समवेत स्वर में प्रार्थना करने लगे कि पहाड़ों में पैदल चलने वाली ड्यूटी ना आ जाए | ऐसे ही एक स्वर में उन्होंने तब प्रार्थना करी थी जब संसद में लोकपाल बिल पेश रहा था | यह प्रार्थना ईश्वर द्वारा स्वीकार कर ली गई इसीलिये कहते हैं कि समवेत स्वर में की गई प्रार्थना में बहुत शक्ति होती  है  | नए  पुराने, अच्छे - बुरे अनुभव साझा होने लगे | पीठासीनों  ने डायरी रटनी शुरू कर दी | दारु का इंतजाम अभी से कर लिया , पता नहीं ऐन टाइम पर मिले ना मिले | कई कर्मचारियों के लिए मतदान किसी बारात से कम नहीं होता जहाँ बिना शराब पिए नाचा ही नहीं जाता |

क्या मंज़र है, मेरे देश की धरती बिना पैसा बोए बोए जगह - जगह नोट उगलने लगी | कहाँ से आया है कहाँ जाएगा कुछ पता नहीं | सब उपरवाले का उपरवाले के लिए | यूँ लगा कि भारत फिर से सोने की चिड़िया बन गया है | शराब  की नदियाँ बहने लगीं | चाय - पानी तो ज़िंदगी भर चलती  रहेगी लेकिन  मुफ्त  की दारू बार - बार  नहीं मिलेगी | सरकार है कि मतदाता को जागरूक करने पर तुली है शायद वह नहीं जानती कि आजकल का मतदाता बहुत जागरूक है उसे अच्छी तरह पता है कि भविष्य का कुछ पता नहीं, जो भी है बस यही एक पल है, अतः वह दोनों हाथों से इस पल को समेट लेना चाहती है | कुछ के लिए यह सौगात मौत का पैगाम लेकर आई | मुफ्त की दारु पीकर जो लुडके तो उठ ही नहीं पाए |

बाज़ार में काजू बादाम, बिस्कुट, नमकीन, मुर्गों, बकरों  के साथ साथ फूलों की मालाओं की बिक्री में अचानक उछाल आ गया | ऐसी मालाओं की बिक्री एकाएक बढ़ गई जिसमे सारे नेता एक साथ समा जाएं |  देखने वाले  समझ जाते हैं कि यही होता है एक थैली के चट्टे -बट्टे या यूँ कहा जाए कि एक माला में हट्टे - कट्टे  |

वातावरण अचानक कुछ कर्णप्रिय शब्दों से भर गया, जिनमें प्रमुख हैं -गरीबी, भ्रष्टाचार, सस्ता अनाज, शिक्षा, रोज़गार, उद्योग - धंधे, विकास कार्य, रोटी - कपडा - मकान, बिजली, पानी,सड़क मूलभूत समस्याएँ आदि | छोटे - छोटे लोग और उनकी  छोटी - छोटी समस्याएँ बड़े - बड़े लोगों के लिए अचानक से महत्वपूर्ण हो गईं | अन्ना हजारे ने अगर भ्रष्टाचार, तमाचा, लड़ाई जैसे शब्दों को छोड़कर इस तरह की शब्दावली अगर बचपन से कंठस्थ ली होती तो उनके बयानों को लेकर कभी हंगामा नहीं मचता | 
    
चुनाव में खड़े हुए उस अन्तर्यामी ने एक दिन हमें बताया कि उन्हें पता है जनता अब परिवर्तन चाहती है | वे अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं | जनता उनके प्रति आश्वस्त है या नहीं ये जनता के बिना बताए वे जानते  हैं | जनता असमंजस में है लेकिन उन्हें कोई संशय नहीं | वे जनता से कहते हैं कि मैं आपका अपना उम्मीदवार हूँ | हांलांकि उन्होंने कभी जनता से अपने खड़े होने के विषय में राय नहीं ली | उनका बरसों पुराना चुनावी क्षेत्र परिसीमन की भेंट चढ़ गया | सो उन्हें  नए सिरे से मेहनत करनी पड़ी | एक नया घर उस क्षेत्र में बनवाना पड़ा | बहाने - बहाने से क्षेत्रवासियों को दावतें दी गईं | अब जनता की बारी है देखते हैं नमक का क़र्ज़ चुकाती है कि नहीं ?

वे कहते हैं कि हमें भारी मतों से विजयी बनाएं | उन्हें शायद पता नहीं कि लोग उन्हें बहुत हल्के में लेती है | उनके विषय में काफ़ी हल्की - हल्की बातें होती हैं | उन्हें पता नहीं कि हम तो मतदान को भी बहुत हल्के  में लेते हैं | जो उनकी ज़िंदगी, उनके कैरियर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, हमारे लिए ज़रा भी नहीं | हमारा मन हुआ तो वोट देने चले जाते हैं अन्यथा बच्चों के साथ घूमने चले जाते हैं या बिस्तर में घुस के नींद पूरी करते हैं | अगर आत्मा ज्यादा ही धिक्कारने लगे तो  तो मतदान के अंतिम चरण में बूथ में अपने दर्शन दे देते हैं, ठीक उसी समय जिस समय मतदान कर्मी सामान समेटने वाले होते हैं | उनके द्वारा लगे गए नारों से हमें  कभी - कभी भ्रम हो जाता है | '' हमारी जीत आपकी अपनी जीत है '' हम समझ नहीं पाते कि कैसे ? अगर ऐसा है तो क्या उनके द्वारा विगत वर्षों में एकत्र की गेई संपत्ति भी हमारी अपनी है ? फटी चप्पल, पैबंद लगी पेंट पहिनकर शहर में आने वाले का बीस साल के अन्दर करोडपति होने का सफ़र किसी की नज़र से छुपा हुआ नहीं है | अगर उनकी दौलत में हमारी हिस्सेदारी नहीं तो उनकी जीत हमारी कैसे हो गई ?

वे सदैव विकास की बातें करने वाले उम्मीदवार हैं | विकास अवरुद्ध होने के कारण बात - बात में उनका गला भी अवरुद्ध हो जाता है | कैमरा सामने होते ही आंसू छलक - छलक कर गिरने लगते हैं | पाषाण ह्रदय जनता हैं कि द्रवित होने का नाम ही नहीं लेती | शंकालु जनता इसे ड्रामा करार देती  हैं | 

एक गुनगुनी धूप वाले अति व्यस्त दिन हमने भाजपा की हेमा मालिनी को भी देखा | कुछ लोगों ने हो सकता है कि सुना भी हो | उसी दिन दोपहर राहुल गांधी का भाषण सुनने भी गए | मायावती की रैली में भी शरीक हुए | मोहल्ले के निर्दलीय के समर्थन में भीड़ जुटाई | टीम अन्ना का दम - ख़म देखा | अखिलेश यादव के दीदार किये | इस अति व्यस्त दिन  हमने चंद हमसे भी ज्यादा व्यस्त लोगों को देखा | कुछ सुना भी था जो लाख कोशिश करने पर भी याद नहीं आ रहा | हम और हमारे जैसे तमाशबीनों को  देखकर सारे दल गदगद हो गए और अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हो गए |

एक गुनगुनाते दिन देशभक्ति के गानों से वातावरण गूंज उठा | जगह - जगह तिरंगे लहरते हुए नज़र आने लगे | लगा कि भारत माता फिर वीरों को पुकार रही है | घर के वृद्ध लोगों की बाज़ुएँ फड़कने लगीं, बुढ़ापे का रक्त जोर मारने लगा |  उन्हें भ्रम हुआ कि कहीं फिर युद्ध तो नहीं छिड़ गया | उस दिन बहुत दिक्कत हुई, वे समझने को तैयार ही नहीं हुए कि इन गानों का प्रयोग चुनाव लड़ने के लिए किया जा रहा है | ''मेरे देश की धरती'' पर ''ए मेरे वतन के लोगों'' भारी पड़ गया | जिसे सुनकर पड़ोस के बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी , जो कागजों में दर्ज होने से रह गए, जिन्होंने इसका लाभ लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मैंने  देश  के ऊपर  कोई एहसान थोड़े ही किया है, रो पड़े | नेहरु जी होते तो आज फिर रो पड़ते |  

प्रत्याशी निर्दलीय था जो मानो हमसे कह रहा हो '' जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी '' वह कुर्बान हुआ हाईकमान के फैसले की बलिवेदी पर जिसे वह गलती कहता है  | हम जानते थे कि कौन कुर्बानी मांग रहा है और कौन कुर्बानी दे रहा है | जिसने टिकट के जुगाड़ में सफलता हासिल कर ली थी उसका लाउडस्पीकर '' मेरे देश की धरती सोना उगले'' बजा रहा था '' | हम समझ गए थे कि जीत  जाएगा तो यह क्या - क्या करेगा  |

एक लाउडस्पीकर आजादी की धुन बजा रहा था | उसे आज़ादी चाहिए निर्वाचन आयोग की सख्ती से | आजादी चाहिए  जी भर के दारु बहाने की | नोट के सहारे गद्दी हथियाने की | 

एक गाने की धुन थी '' आपस में प्रेम करो देशप्रेमियों'' | हमने उन्हें बताना चाहा कि हम तो आपस में रहते ही प्रेम से हैं,  ये तो वे हैं जो हमें कहते हैं '' अपनी जाति के प्रत्याशी का ख्याल रखिये ''| लेकिन गाने के शोर तले हमारी आवाज़ दब के रह गई |

और आज अचानक चुनाव प्रचार ख़त्म हो गया | लगता है जैसे समर्थकों के शरीर से रक्त निचोड़  लिया गया हो | तेज़ चाल मंद पड़ गई | कदम रुक गए | निरंतर चीखते - चिल्लाते गलों ने शुक्र मनाया | घरवालों ने कई रोज़ बाद चेहरे के दीदार किये और कई रोज़ बाद उनके लिए रात का खाना बना | कार्यकर्ता नाम के ये बेरोजगार फिर से पैदल हो गए | 

दुविधा में तो मैं भी हूँ | घर के सामने  एक ही खम्भा है जिस पर तीन प्रमुख प्रत्याशियों के पोस्टर लगे हुए हैं | तीनों चौबीसों घंटे जैसे हम पर नज़र रखे हुए हैं | जब भी बाहर नज़र जाती है, छः जोड़ी आँखें घूरती रहती हैं |

एक जो सबसे ऊपर लगा है वह क्षेत्र के लिए नया है और जिसका नारा है सोच नई संकल्प नया | आश्चर्य इस बात पर हुआ  कि उसने पोस्टर में अपनी पुरानी फोटो लगाई हुई है | कल जब सामने से उसे देखा तो कोई पहिचान ही नहीं पाया | बाल उड़े, चेहरे पर झुर्रियां, फूला हुआ शरीर | नया होते हुए भी उसने क्षेत्र के निवासियों का ध्यान रखा | बुद्धिमान आदमी है,  उसे पता था कि जो भी करना है आचार संहिता के लगने से बहुत पहले कर लो | उसके बांटे हुए कलेंडर से हमने सन् दो हज़ार नौ की छुट्टियाँ देखीं | डायरी में मित्रों के जन्मदिन लिखे | पैन का इस्तेमाल कक्षा में कॉपी जांचने के लिए किया | जब हम जानते  भी नहीं थे  वह तब  से क्षेत्र में सक्रिय  था | और ये लो... धूल और धुंए के गुबार के बीच उसका काफिला गुज़र गया | पच्चीस के बाद कारों की गिनती करना छोड़ दिया | हम देखते रह गए कि वह अब हाथ जोड़ेगा तब हाथ जोड़ेगा, लेकिन यह क्या ? वह हवा को हाथ जोड़ता हुआ निकल गया | ये नए ज़माने का नेता है जो जनता को नहीं सड़क को और हवा को हाथ जोड़ता है |

दो उम्मीदवारों ने अपने पोस्टर इस उम्मीद से लगवाए थे कि टिकट तो पक्के ही समझो, लेकिन अफ़सोस दोनों को ही टिकट मिल नहीं पाया | उनमे से एक ने हाथ भी नहीं जोड़ रखे हैं, मानो कह रहा हो जब टिकट मिलेगा तब हाथ जोडूंगा |

और देखते ही देखते  मतदान का दिन आ खड़ा हुआ है | मेरे सामने संकट की स्थिति है कि किसे अपना अमूल्य मत  दूँ | यह वास्तव में अमूल्य कहे जाने योग्य है क्यूंकि इसके लिए मुझे किसी ने मूल्य देना उचित नहीं समझा | पढ़ा - लिखा इंसान हर जगह मारा जाता है | मुझसे अच्छे तो मेरे गाँव वाले निकले, जिनके घर वोट के बदले लिफाफे, कम्बल और तमाम छापामारी के बावजूद बोतलों की पेटियां पहुँच गई | 

कुछ भी लिखूं , कुछ भी कहूं लेकिन आने वाले दिन मतदान अवश्य करूंगी क्यूंकि औरत और नेता दो ऐसे प्राणी हैं जिनका विश्लेषण करना और गालियाँ देना बहुत सरल होता है स्वयं बनना बहुत कठिन |