शुक्रवार, 26 मार्च 2010

हो कहीं भी जूतियाँ, लेकिन पैर में ही रहनी चाहिए.

सीटियाँ प्रतीक हैं राष्ट्र की एकता का अखंडता का और  साम्प्रदायिक सौहार्द का| सीटी बजाने वाले की जाति  या मजहब नहीं पूछी  जाती | यहाँ ना कोई छोटा होता है ना बड़ा| यहाँ आकर सारे भेद समाप्त हो जाते हैं|
 
वर्तमान युग बेहद  अनिश्चिन्तताओं से भरा  है| ऐसे में सीटी प्रतीक है निश्चिंतता की, आश्चर्य की और प्रशंसा की| सीटियों से निकलने वाली वायु एवं ध्वनी  ने हमेशा से भारत के युवावर्ग  के अन्दर  प्राणवायु भरने का कार्य किया है|
 
पिछले कई वर्षों से, खासतौर पर जबसे छोटे-छोटे कस्बों में मल्टीप्लेक्सों ने अपना जाल बिछा दिया है, सिनेमाहाल में बजने वाली सीटी की आवाज़ सुनाई देनी बंद हो गई थी| एक तरह से यह सीटियों पर आया हुआ संकट था, जिसे कई लोग संस्कृति पर आया हुआ संकट भी कहते हैं|
 
आज जब मुलायम सिंह ने महिलाओं के संसद  में आने पर नौजवानों द्वारा सीटी मारने की बात को बहुत जोर - शोर से उठाया, तब आमजन के मुँह से लगभग लुप्तप्राय हो चुकी सीटी बजाना नामक कला को पुनर्जीवन प्राप्त हुआ|
 
मुलायम सिंह पुरानी पीढ़ी के हैं| राष्ट्र पर वर्तमान में आए हुए इस सीटी संकट से अनजान हैं| वैसे चाहें तो वे सीटी बजने की कोचिंग क्लास भी खोल सकते हैं| भूतपूर्व अध्यापकी अभी भी उनकी रगों में ज़िंदा होगी|
 
सीटी की उपयोगिता हमारे दैनिक जीवन में कितनी है, यह हम सीटी को अपने जीवन से निकाल कर देखें तभी पता चल पाएगी| क्यूंकि पत्नी सहित किसी भी चीज़ की उपयोगिता हमें तभी पता चलती है जब वह एक दिन यूँ ही बिना बताए हमारे  दैनिक जीवन से बाहर हो जाती  है|
 
रेलगाड़ियाँ अगर बिना सीटी बजे प्लेटफोर्म पर आ जाए, या क्रोसिंग को पार कर जाए तो क्या होगा? हांलांकि हममें  से कई लोगों के लिए सीटी का मतलब सामने से आती हुई रेल द्वारा क्रोसिंग को  पार करने की अनुमति होता है| वे रोमांच  के प्रेमी ठीक उसी समय बीबी - बच्चों सहित क्रोसिंग पार करते हैं जब धडधडाती हुई ट्रेन की आवाज़ से अगल - बगल खड़ी जनता की ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह जाती है|
 
गृहस्थ  जीवन में सीटी की महत्ता से भला कौन गृहिणी इनकार कर सकती है? जब तक रसोईघर से कुकर की सीटी नहीं बज जाती, हमारे प्राण अटके रहते हैं| चाहे घर के किसी भी कोने में चले जाएं, सीटी की आवाज़ कानों तक पहुँच ही  जाती है|  सीटी के अटक जाने पर कुकर को हर दिशा से ठोक - पीटकर बजाकर देखना पड़ता है| सीटी के पुनः बजने के साथ ही हमारी सांस वापिस लौटती है|
 
कुकर का ख़राब होना काफ़ी हद तक उसके मरम्मत  करने  वाले पर निर्भर रहता है| वह उसे इस कलाकारी से बनाता है, जिससे हमें उसे ढूँढने की हर दस दिन में ज़रुरत पड़ जाए|
 
बिना सीटी के स्कूली जीवन की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है| यहाँ दोनों एक दूसरे के पूरक हैं| स्कूल में सीटी का मतलब होता है, चेतावनी, और यह निर्भर करता है स्कूल के पी. टी.  आई. पर, और उसको मिलने वाली तनखाह पर| अगर वह सरकारी  कर्मचारी हुआ तो सीटी का बजना महीने की शुरुआत में ही ख़त्म  हो जाएगा| बाकी महीने  सीटी उसके प्रिय चंद मुंहलगे शिष्यों के मुँह में शोभा पाती  है, जो उसे बजाने का अभ्यास सदा लड़कियों के सामने करते हैं|
 
वाचमेन अगर रात में सीटी ना बजाए तो कोई चैन की नींद सो सकता है भला? सुबह कूड़ा मांगने वाला अगर सीटी ना बजाए तो हममें  से कईयों की सुबह ही ना हो|
 
कई बार पुरुषों को सीटी बजाने पर महिलाऐं भी बाध्य करती हैं| ऐसा अवसर तब आता है जब हम बस से यात्रा कर रहे होते हैं, और कंडक्टर से हमारा निर्धारित स्टॉप आने पर सीटी बजाने का आग्रह करते हैं, '' भैय्या, सीटी बजा दीजिये, स्कूल आ गया''|कई बार भैय्या सुनकर झल्लाया हुआ कंडक्टर स्टॉप से दो किलोमीटर आगे बस रुकवाता है| ऐसे में अपने पास एक अदद सीटी ना होने की कमी बहुत खलती है|
 
महिलाओं की उम्र से सीटियों का गहरा सम्बन्ध रहा है. जहाँ एक तरफ किशोरावस्था में युवकों द्वारा बजाई गई सीटियाँ लड़कियों की साख में बढ़ोत्तरी करती हैं, वहीं संसद जाने की उम्र में साख में बट्टा लगाने का कार्य करती हैं| सोलह साल की उम्र में लडकियां सीटियों को लेकर एक दूसरे की जाने दुश्मन तक बन जाया करती हैं| एक दावा  करती है कि उस लड़के ने मुझे देखकर सीटी मारी थी| दूसरी उसका पुरज़ोर विरोध करके बाजी हुई सीटी को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती है| इतनी हिम्मत उस उम्र में नहीं होती कि जाकर पूछ लें कि ''आपके पवित्र मुँह से निकली सीटी पर हममें  से किसका नाम लिखा था?'' ऐसा भी हो सकता है कि  दोनों डाइरेक्ट ऐसा विवादस्पद प्रश्न  पूछकर अपने -अपने  भ्रम को नहीं तोडना चाहती हों|
 
लड़कियों का सीटी द्वारा पटना, सीटी बजाने के अंदाज़ पर भी निर्भर करता है| गाने वाली सीटी सदा से लड़कियों की मनपसन्द रही है|
क्यूंकि इसमें बहुत मेहनत लगती है| वहीं एक ही सुर में जोर जोर से सीटी बजाने वाले को पसंद नहीं किया जाता| यूँ सीटी बजाना  बहुत आसान काम भी ना समझा जाए| इसकी उचित ट्रेनिंग गर्ल्स  कोलेज के पास के वातावरण में मिलती है| उचित वातावरण के अभाव में मुँह से हवा ही हवा निकलती रहती है| ऐसे हवा - हवाई लड़कों को हवा में उड़ाने लडकियां  तनिक भी देरी नहीं करती हैं|
 
कभी कभी बिना प्रयास किये हुए भी मुँह से सीटी बज जाती है| आजकल जब थैला  पकड़कर बाज़ार जाती हूँ, तो सब्जियों और फलों के दामों को सुनकर मेरे भी मुँह से सीटी निकल जाती है| जिस कला को मेरी कतिपय सीटी बजाने वाले दोस्तें भी मुझे नहीं सिखा पाईं, वह इस महंगाई ने एक झटके में सिखा दिया|
 
 मुलायम सिंह सीटी बजाने के जोश में इतना उत्साहित हो गए कि यह बताना  भूल गए कि सीटियाँ मुँह से बजाई जाएँगी या बाज़ार से बनी बनाई सीटियाँ इस काम के लिए प्रयुक्त होंगी| यहाँ यह बात ध्यान देने वाली है कि संसद  में जाती हुई महिलाओं को देखकर सीटी बजाने वाले नवयुवक मेहनत करने वालों की श्रेणी में नहीं होंगे, क्यूंकि जो मेहनत कश  होंगे  उन्हें  सीटी बजाने का समय कहाँ होगा?
 
मुलायम सिंह चाहते तो सीटी बजाने के स्थान पर ढोल नगाड़े  बजाने को वरीयता दे सकते थे, लेकिन ढोल नगाड़ों को बजने का हक़ तभी है जब उनकी बहू या बेटी संसद की शोभा बढ़ाए. 
 
अंत में फिर से उधार लेकर कुछ पंक्तियाँ....आजकल महंगाई बहुत ज्यादा है ना इसीलिये उधारी से ही काम चलाना पड़ रहा है....आप समझ ही जाएंगे कि उधारी किसकी है....
 
हो गई है चीर द्रौपदी सी, यह बंद होनी चाहिए
इन मुलायम सरीखों को अब सजा मिलनी चाहिए.
 
आज ये बाहुबली, डर के मारे कांपने लगे
आने वाले कल की सोच, आज ही से हांफने लगे.
 
हर मकान में, कोठी में, हर बंगले में, झोंपड़ी में
पिटकर भी हमको चुप रहना चाहिए.
 
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना इनका मकसद नहीं
इनकी कोशिश है कि औरत को देखकर
सीटी बजनी चाहिए.
 
मेरे पैरों में ना सही, तेरे पैरों में सही
हो कहीं भी जूतियाँ, लेकिन पैर में ही रहनी चाहिए.