शुक्रवार, 12 मार्च 2010

आने दो हमें संसद में, क्यूंकि ....

 
नेताओं  और औरतों या के मध्य कई समानताएं पाई जाती हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि एक नेता बनने के सारे ही गुण एक महिला में विद्यमान रहते हैं, अतः उन्हें संसद से दूर रखने की कोशिश किसी भी सूरत में नहीं करनी चाहिए|
 
नेता और नारी दोनों पर जितना भी लिखा जाए, उतना कम है|
 
 स्वतंत्रता से पहले दोनों की छवि समाज में बहुत अच्छी  थी|
 
दोनों ही का वजन कम हो तभी लोगों के अन्दर सुकून रहता है, जैसे ही  चर्बी चढ़ने लगती है, औरतें पति व ससुराल की नज़रों में और नेता जनता की आँखों में खटकने लगता है|
 
दोनों की  जैसे - जैसे उम्र बढ़ती जाती है, जवानी लौट लौट कर आती है|  
 
दोनों की भोली भाली सूरत ही दिल को भाती है, दोनों की  छवि जितनी गिड़गिडाती  हुई, हो उतना  जनता और समाज को सुकून मिलता है| दोनों का हाथ पर हाथ धर के  बैठे रहना कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता| दोनों हर समय काम करते हुए ही अच्छे लगते हैं|
 
दोनों को तब तक नोटिस में नहीं लिया जाता, या महत्व को जानबूझ कर  अनदेखा किया जाता है, जब तक वे बगावत या विद्रोह ना कर दें, या कहिये कि पार्टी बदल लेने और अपनी स्वयं की  स्वतंत्र पार्टी बनाने की धमकी ना दे दें| 
 
घोटाले करने की आदतें दोनों में समान रूप से पाई जाती हैं, महिलाओं के घोटाले जहाँ घर के राशन -पानी में कटौतियां करके  साड़ी  या गहने खरीदने तक ही सीमित रहते हैं, वहीं नेताओं के घोटालों का आकाश असीमित  रहता है|
 
दोनों ही जोड़ - तोड़ और दिखावा करने की  कला में पारंगत होते हैं|
 
  वोट मांगने जाते समय नेता,और शादी से पहले महिलाएं अपने होने वाले पति की हर बात पर हाँ जी हाँ जी करती हैं, दोनों ही मन ही मन सामने वाले को गालियाँ  दिया करते हैं, और मन ही मन में  बाद में बताने की धमकी दिया करते हैं, और  कार्य सिद्ध हो जाने पर रंग बदलने में  गिरगिट को भी मात कर देते है| वोटर और पति दोनों ही, हाय फिर ठगे गए  वाली भावना महसूस करते हैं
 
औरतों के दिल में लाभ वाला पति और नेता के ह्रदय में  लाभ वाला पद मिलने की आकांक्षा  समान रूप से  रहती है,  जिसको प्राप्त करने के  लिए दोनों किसी भी सीमा तक झूठ बोल सकते हैं या कहिये कि एढ़ी-चोटी का जोर लगा दिया करते हैं|
 
 दोनों की बढ़ी हुई तनखाहें लोगों की ईर्ष्या का केंद्र बिंदु होती हैं, दोनों के बढे हुए भत्तों को नज़रंदाज़ करना आसान नहीं होता| दोनों के वेतन को लोग कामचोरी का वेतन मानते हैं और लगातार  डिटेल जानने की कोशिश करते रहते है|
 
दोनों की कड़ी मेहनत को अनदेखा करने की प्रवृत्ति  समाज के अन्दर समान भाव से पायी जाती है|
 
दोनों के चरित्र पर उंगली उठाना बहुत आसान है, ज़रा सी चारित्रिक फिसलन से दोनों को  बहिष्कार का सामना करना पड़ता है.
 
दोनों को हम जब चाहे तब भरपूर गालियाँ  दे सकते हैं, और मौजूदा समाज में आये हुए पतन का ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं
 
दोनों को मज़े की ज़िंदगी जीते हुए देखकर बहुत तकलीफ होती है| दोनों की ज़िंदगी को लोग बहुत आसान समझते हैं लेकिन खुद वैसी ज़िंदगी नहीं जीना चाहते|
 
दोनों अच्छा पहने या बुरा, आलोचना का शिकार होना पड़ता है, अच्छा पहनने पर जहाँ फिजूलखर्ची का आरोप और बुरा पहनने पर  ढोंग करने की संज्ञा दी जाती है| दोनों के  रहन सहन या अन्य किसी प्रकार के शौक  पर अक्सर लम्बी लम्बी बहसें होती रहती हैं, यहाँ पर भिन्नता यह है कि महिलाओं  के लिए हम चाहिए शब्द का प्रयोग धड़ल्ले से और अधिकार पूर्वक करते हैं, वहीं नेताओं की वेशभूषा हमें ग्राह्य होती है.
 
 दोनों के लिए हर कोई आचरण संहिता का निर्माण करना चाहता  है|
 
दोनों का अंत जानना आज भी उतना ही  असंभव है  जितना प्राचीन काल में हुआ करता था|
 
दोनों जैसे - तैसे अपना कार्यकाल पूरा कर ही ले जाते हैं| दोनों के कार्यकाल की सफलता हाईकमान के वरदहस्त मिलने पर ही संभव होती है|
 
 समय आने पर दोनों बँगला हो यो झोंपड़ी हर जगह, हर परिस्थिति में एडजस्ट  सकते हैं|
 
दोनों को बेचारा समझने की भूल कभी नहीं करनी करनी चाहिए|
 
दोनों समय पड़ने पर आंसुओं और मुस्कान को कैश करना अच्छे तरह से जानते हैं, यह भी सच है कि दोनों के आंसुओं की तुलना बेहिचक लोग घड़ियाल से कर लेते हैं|
 
 कितनी ही आलोचना क्यों ना करें, संकट के समय इन्हीं के पास जाना पड़ता है, और यही हमारे संकटमोचक साबित होते हैं|
 
दोनों के ही पर कतरना अब किसी के बस की बात नहीं है और, किसी भी हाल में संभव नहीं है|