गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

मास हिस्टीरिया और परीक्षाओं के दिन

उत्तराखंड  के सुदूरवर्ती  ग्रामीण क्षेत्रों  के कुछ  विद्यालय इन दिनों विद्यार्थियों  के असामान्य व्यवहार को लेकर चिंतित हैं. इन दिनों  बच्चों के अन्दर तथाकथित देवी या देवता अवतार ले रहे हैं. साधारण शब्दों में जिसे मास हिस्टीरिया कह सकते हैं,  जिसके कारण विद्यालय में पठन - पाठन प्रभावित हो रहा है और बच्चे ऐसे नाज़ुक समय में पढ़ाई लिखाई से दूर हो रहे  हैं. गौरतलब बात यह है कि बोर्ड परीक्षा शुरू होने में कुछ ही दिन बाकी हैं,  ऐसे में इन बच्चों का पूरा साल प्रभावित होने की आशंका प्रबल हो गई है.

 

परीक्षा के बढ़ते दबावों को ना झेल पाना, अभिभावकों और स्वयं विद्यार्थियों द्वारा पढ़ाई को गंभीरता से ना लेना, अर्धवार्षिक परीक्षाओं में ख़राब प्रदर्शन, रक्ताल्पता, शारीरिक कमजोरी, पेट में कीड़ों का होना, दोस्तों से बिछुड़ने का भय, विषम आर्थिक परिस्थितियाँ, तनावपूर्ण घरेलू माहौल, और सबसे बढ़कर  अन्धविश्वास की जंजीरों में जकड़े हुए ग्रामीण, इसका प्रमुख कारण है. अभिभावक,  इस बीमारी को देवी देवता का प्रकोप मानकर उसे शांत करने के लिए  विद्यालय परिसर के अन्दर झाड - फूंक, पूजा - पाठ और मासूम पशुओं तक की बलि चढ़ा रहे हैं, जो किसी भी तरह से इस मानसिक समस्या  का समाधान नहीं हो सकता, लेकिन ग्रामीण  अंधविश्वासों के प्रति बेहद कट्टर रवैय्या  अपनाते हैं और ना चाहते हुए भी विद्यालय प्रशासन  उनका विरोध करने का साहस  नहीं कर पाता.

 

यह समय बच्चों के लिए बेहद नाज़ुक है, इस कठिन समय में उन्हें जितना हो सके तनाव से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए. माता - पिता अपने बच्चों को स्नेह दें, उन्हें परीक्षाओं का या फ़ेल होने का हव्वा ना दिखाएं. लड़कियों को जितना हो सके घरेलू काम - काज से मुक्त रखना चाहिए, यह कटु सत्य है कि ग्रामीण क्षेत्रों  की बालिकाएं घरेलू कार्यों  में इतना व्यस्त रहती हैं कि उन्हें परीक्षा की उपयुक्त तैय्यारी  का मौका नहीं मिल पाता.  फ़ेल होने का डर उनके दिल - ओ दिमाग में रात - दिन हावी रहने लगता है, परिणामस्वरूप वे अवसाद से घिर जाती हैं, और इस तरह का असामान्य व्यवहार करने लगती है, जिन्हें उनके शब्दों  में देवी आना भी कह सकते हैं उनके इस व्यवहार से उनके प्रति लोगों  का दृष्टिकोण बदल जाता है. समाज में उन्हें  विशिष्ट और पूजनीय नज़रों से देखा जाने लगता हैधार्मिक मान्यता मिलने से उन पर  परीक्षा और उसके परिणाम  का दबाव  कम हो जाता है.

प्रश्न यह है कि इस समस्या से कैसे निबटा जाए ? चूँकि यह बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ मामला है इसीलिये इसे हल्के में लेने की भूल कदापि नहीं  करनी चाहिए. विभाग कोई ऐसी ठोस नीति तैयार करे, जिससे  कुछ प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों को समय - समय पर, खासतौर से परीक्षा से कुछ समय पहले विद्यालयों में भेजा जा सके. इससे  ना केवल विद्यार्थियों अपितु शिक्षकों और अभिभावकों को भी मॉस हिस्टीरिया के सम्बन्ध में जानकारी मिल सकेगी, जिससे बच्चों का मानसिक तनाव कम होगा, और वे बिना मॉस हिस्टीरिया का शिकार हुए भयमुक्त होकर परीक्षा दे सकने में समर्थ हो सकेंगे.

 

 

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

क्यों चलें गाँव की ओर?

मान्यवरों, क्यों लौटना चाहते हैं गाँव की ओर? अच्छा! घास खिलाने या यूँ कहिये कि गाँव वालों को चारा डालने? शहरी जानवर आपका फेंका चारा नहीं खा रहे हैं इसीलिये ना! आपका इंतज़ाम तो पुख्ता है ना?

 

आजकल मौसम ख़राब चल रहा है, तबीयत ख़राब  हो गई तो कहाँ जाएंगेवैसे  अस्पताल भी है यहाँजिसमें  बड़ी मुश्किल से पाँच साल बाद एक डॉक्टर को सरकार ने ठेके पर नियुक्त किया था, जो नियुक्ति के फ़ौरन बाद से लापता है, आज तक उसके बारे में पता नहीं चला| यहाँ का फार्मासिस्ट ही यहाँ का सर्वेसर्वा है, जिसने  सरकारी दवाओं को बेच - बेच कर कोठी खड़ी कर ली है| सुनते हैं कि उसी ने डॉक्टर को डरा धमका कर वापस भेज दिया| इसके अलावा कई पीढ़ियों से यहाँ एक बंगाली डॉक्टर है, जिसके पास आम जनता इलाज के लिए जाती है| जाए भी क्यों ना? मात्र १० रूपये में मरीज़ देखने के साथ - साथ वह तीन समय की दवाई भी देता है| जब दवाई ख़त्म हो जाती है तो  कैसा भी मर्ज़ हो, वह इंजेक्शन ठोंक देता है|

 

स्वागत कैसा होगा और कौन करेगा महिलाएं यानी आधी आबादी? वह तो सुबह मुँह-अँधेरे ही खेतों में चली जाती है ताकि  गृहस्थी की गाड़ी के पंक्चर  हो चुके दूसरे पहिये को रात को दारु पीकर मार-पीट करने के लिए ताकत मिलती रहे|

 

वन्य जीवन यानि पर्यावरण? हाँ इसे बचाना हर इंसान का फ़र्ज़ है, लेकिन सुनिए! आज अचानक  से सारी दुनिया बाघों को बचाने के लिए चिंताग्रस्त हो गई  है परन्तु  बाघों के मुँह से अपने बच्चों को  बचाने के लिए मात्र दराती लेकर जो  भिड़ जाती है उस औरत को बाघ के मुँह से छुडाने  कोई नेटवर्क नहीं आता|

  

आपके टेंट में जेनेरेटर तो होंगे नाक्योंकि यहाँ जब बिजली चली जाती है तो आसानी से नहीं आतीअक्सर बिजली के खम्भों से भड़ाम की आवाज़ आती है और ट्रांसफार्मर फूंक  जाता है| और फुंकी हुई चीज़ को ठीक होने में हफ़्तों भी लग सकते हैंक्योंक्योंकि जितने कनेक्शन नहीं हैं उससे तिगुनी कटिया तारों में डली  रहती हैं| डरपोक बिजली का बिल भरते  हैं और बाहुबली कटिया डालते हैं|

 

हरा-भरा वातावरण देखने की इच्छा है आपकी? लेकिन महाशय, यहाँ के अधिकाँश गाँव वालों ने अपनी ज़मीनें बड़े-बड़े ज़मींदारों के पास गिरवी रख रखी हैं और अब वे अपनी ही ज़मीनों पर मजदूरी करते हैं| क्योंक्योंकि किसी के लड़के को शहरी लड़कों की देखा देखी मोटर साइकिल  चाहिए तो किसी को अपनी लड़की की शादी में दहेज़ देना है| अक्सर गाँव की तरफ आने वाली सड़क के मोड़ में शहरों  की तेज़ रफ़्तार की बराबरी करते किशोरों के तरबूज की तरह फटे सिरों और उन पर विलाप करती माँओं के समाचारअखबार में सबसे कोने पर आप पढ़ ही लेते हैं|

 

युवा पीढ़ी! हाँ, यहाँ भी पाई जाती है, लेकिन अगर आप इनके भरोसे आना चाहते हैं तो बेकार है| क्योंकि इन्होंने आजकल मुँह पर नकाब डालकर घरों के ताले तोड़ने में कुशलता हासिल कर ली है| आपके टेंटों की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता तो  है ना? इसे शनि का सिंग्नापुर समझ के मत आना, यहाँ के राहू केतुओं के आगे कैसा भी शनि क्यों न होदुम दबा कर भाग जाता हैये गैंग  बनाकर चलते हैं| जब इनके मुँह पर नकाब नहीं होता तब ये गाँव में उपद्रव करते हैं, पान की दुकानों  पर खड़े  होकर मसाला चबाते हैं| जब  मसाला नहीं चबाते तब ये ज़ोर-ज़ोर से माँ बहिन की गालियाँ बकते हैंराह चलती लड़कियों को छेड़ते हैं| उनको भगा कर ले जाना इनके लिए बहादुरी का काम हैकभी-कभी ये कॉलेज भी चले जाते हैं| लेकिन बस चुनावी मौसम में, जब कॉलेज में उपद्रव करने की या बसों और कार्यालयों में तोड़ - फोड़ करने की ज़रुरत होती है|

 

हरियाली? अरे, आप तो खेतों की तरफ आ गए| हाँ, ये वाला खेत नरीराम का है, ये बगल वाला पनीराम का और जो उस तरफ दिख रहा है वह अनीराम का| उससे सटा हुआ मनीराम का है| सही समझे आप, चारों सगे भाई हैं| भाईचारा कहा आपने? यह चारा यहां नहीं मिलता| ये जो चारों भाई हैं ना, ये एक दूसरे के विरुद्ध षड़यंत्र बुनने में व्यस्त रहते हैं| कोई किसी की मेढ़ खोद देता है तो वह बदले में पानी चुरा आता है| चारों के बीबी बच्चे एक दूसरे के विरुद्ध खुलेआम अपशब्दों का प्रयोग करते हैंअदालत में चारों का एक दूसरे के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा साल भर चलता रहता है|

 

शान्ति की तलाश? लेकिन यहाँ तो रात होते ही कच्ची शराब पीकर धुत्त मर्दों  द्वारा   घरों के भीतर से औरतों को मारने-पीटने की आवाजें दरवाज़े फाड़कर बाहर चली आती हैं| हर घर एक दूसरे का तमाशाई बन जाता है| सिर फूटने से लेकर टांग टूटने तक कुछ भी हो सकता है| जो आपके ए. सी. टेंटों के  भीतर चुपके-चुपके होता है, वह यहाँ खुले में और वह भी डंके की चोट पर होता है| लेकिन चिंता न करें, सुबह होते-होते सब कुछ ऐसे शांत हो जाता है जैसे कि कुछ हुआ ही न हो|

 

सीधा-सादा जनजीवन? न जन सीधा-सादा रह गया है और न ही जीवन| यहाँ का आदमी चाहे दिन भर हाथ पर हाथ धर के बैठा रहे लेकिन बाहर वालों पर एक्स-रे से भी तेज़ नज़र रखता है| अगर आपने ज़रा सा भी उल्टा-सीधा करने की कोशिश की तो  सूचना के  अधिकार के अंतर्गत क्या कार्यवाही करनी  होती है यह उसे भली भाँति पता है|

 

शिक्षक? बुद्धिजीवी वर्ग? इनकी बुद्धि के क्या कहने| सड़क किनारे का स्कूल है, इसलिए बीस बच्चों पर पाँच शिक्षक तैनात हैंउस कच्ची सड़क पर बारह  किलोमीटर दूर सौ बच्चे हैं और दो शिक्षिकाएं| दोनों बारी बारी से छुट्टी पर जाती हैं और गाँव की एक इंटर पास लड़की बच्चों को पढ़ाती है| खाना बनाने वाली हरिजन है, सो ब्राह्मन बच्चे मिड-डे मील का खाना नहीं खाते| अगर खिलाने की कोशिश करो तो गाँव वालों के साथ  मार-काट की नौबत आ जाती है| आज बच्चे कम क्यों हैं? हिन्दू बच्चे हरिद्वार कांवड़ लेकर गए हैं| पैदल लौटने में पता नहीं कितने दिन लग जाएं, कुछ नहीं कहा जा सकता|  मुस्लिम बच्चे नमाज़ पढ़ने चले गए,हैं  सो अब लौट कर नहीं आएँगे| बाकी बच्चे गाँव में एक शादी है इसलिए वहां गए हैं| जब तक गाँव में शादियों का मौसम रहेगा बच्चों का स्कूल आना असंभव हैअधिकारी क्या करते हैं? दो गधेरे, तीन नाले, एक नदी, और रास्ते में मिलने वाले अजगर और  तेंदुओं से एनकाउन्टर की आशंका हो तो कौन सा अधिकारी झाँकने की हिम्मत बटोरेगा|

 

क्यों खिलाना चाहते हैं हमारे जानवरों को शहरी घास? हमें पता है कि शहर के जानवर अब घास नहीं खातेवहाँ घास से यारी करने वाले  मरियल घोड़े हैं  कोई किसी को घास नहीं डालता  और जो शक्तिशाली घोड़े हैं उन्हें हथियाई हुई घास ही हज़म होती हैए. सी. टेंटों में उगी इस घास की यह विशेषता हमें पता है कि  कैमरे  के पलटते ही यह कैक्टस  बन जाती है| हमारी गाएं, जो यहाँ हरी घास के विज्ञापन देखकर आती हैं,  पेट में पॉलिथीन का ढेर लेकर लौटती हैं और तड़प तड़प कर मर जाती हैंहमें याद है पिछली बार ग्राम प्रधानी के चुनाव में जितनी शराब हमारे गाँव में बही थी उतना पानी बहता तो इस साल सूखे से फसल नहीं तबाह होती|
 

हमें  गाँव में तुम्हारे टेंट नहीं चाहिए| अभी  चाहे जैसे भी हैं, हमारे गोबर घरों में तो हैंफिर वे मेह्ताओं की चमक से अंधे होकर उनके टेंटों में चौकीदारी  किया करेंगे और धनियाएं उनकी रसोई के डिब्बों में कैद होकर रह जाएँगी|