सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

त्यौहार का दिन और गैस चोरी हो गई

साथियों , कैसा लगेगा आपको जब घर में दो - दो आयोजन हों और पता चले कि आपकी गैस चोरी हो गयी हो..कल जब इस नाचीज़ ने चिट्ठा - चर्चा पर नज़र डाली तो पाया कि किन्हीं आकांक्षा  की कृपादृष्टि मेरे ब्लॉग पर पड़ चुकी है , और उन्होंने बिना मुझसे पूछे मेरी रसोई से गैस निकली और अपनी रसोई में फिट कर ली , मैंने कई दिनों तक धूप में ,लम्बी लाइन में खड़ी होकर दो भाइयों के झगड़े के बावजूद गैस भरवाई , ताकि मेरे ब्लॉग का चूल्हा जलता रहे ,और महोदया उसे एक झटके में खोल कर ले गयी , आपके पास रोटी पकाने के लिए गैस नहीं थी तो मुझसे मांग लेतीं , मुझे भी सुकून होता कि मेरे ब्लॉग की रोटी से कोई और भी अपना पेट भर रहा है ,आपने तो चार - पांच रोटी रूपी टिप्पणी तक सेंक ली ,कोई और बहिन होती तो आपसे अवश्य ही पचास रूपये झटक लेती ..लिंक
 मैं हिन्दुस्तानी स्त्री हूँ उससे भी बढकर एक  ब्लोगर हूँ ,, मेरी किसी पडोसन को या सहेली को मेरी कोई साड़ी या जेवर पसंद आ जाती है तो मैं उसे उदारता पूर्वक पहिनने के लिए दे दिया करती हूँ , हांलाकि बिना टयूशन वाली मास्टरनी के पास ऐसी कोई साड़ी या जेवर नहीं है यह तो मैं अपने को खुश रखने के लिए कह रही हूँ , जब बात गैस की हो जाती है, वह भी बिना पूछे लगी गई, तो गुस्सा आना स्वाभाविक है .http://shefalipande.blogspot.com/2009/08/blog-post.html
,  स्टोव में तेल नहीं है क्यूंकि इस साल स्कूल में पढाना पड़ गया सो मैं बी . पी . एल .कार्ड नहीं बनवा पाई , और मिट्टी का तेल लेने की योजना मिट्टी में मिल गई ., वैसे अगर स्टोव पर खाना बनाना पड़ता तो गुस्से में पम्प जोर से मारती और ऐसे में स्टोव के फटने का भी खतरा था, पांडे जी को खामखाह ही जेल हो जाती , हांलांकि इससे उनके बार बार  यह कहने की परीक्षा हो जाती कि मेरे हाथ का खाना खाने से जेल का खाना ज्यादा अच्छा होता होगा.
 
 थक हार के चूल्हा सुलगाना पड़ता ,इस प्रक्रिया में , मैं ही ज्यादा सुलगती और कुछ शोले पांडे जी पर भी ज़रूर  गिरते.
 .तो बात थी दो - दो आयोजनों की .....एक तो पाबला जी बता ही चुके हैं ....आज से आठ साल हमारा  निहार रंजन पांडे जी के साथ गठबंधन हुआ था ,आठ साल कहने से ही ''आठ - आठ आँसू'' 'जाने क्यूँ याद आ जा रहे हैं , ये वही साल २००१ था ,जब विवाह से ठीक एक माह पूर्व न्यूयार्क का ट्विन टावर जीरो ग्राउंड में बदल गया था, ,सेंसेक्स पांच हज़ार की उच्चतम सीमा को लाँघ गया था ,जो कि मंदी के आने का पूर्वाभास था ,भाजपा के बंगारू लक्ष्मण को घूस के आरोप  में  बिना राम के वनवास  मिल चुका  था ,,उसी साल हमारा आज ही के दिन पाणिग्रहण हुआ था ,बीस - पच्चीस बाराती, बिना बैंड - बाजे के गोधूली के समय {चक्का जाम के कारण बारात सुबह पांच बजे की जगह शाम पांच बजे पहुँच पाई , हर कोई अपने - अपने स्तर से पांडे जी को बचाने के प्रयास में जुटा हुआ था }  हमारे द्वारे पहुंचे , फटाफट ट्वेंटी - ट्वेंटी की तर्ज़ पर विवाह संपन्न हुआ, एक कपडों की अटैची और एक किताबों से भरा हुआ संदूक { पांडे जी की इच्छानुसार }लेकर हम खाली हाथ बारातियों के टीका पानी न मिलने के कारण  मुरझाए हुए चेहरों के साथ  कानपुर आ गए .
 
दूसरे, कल यानी सत्ताईस अक्टूबर के दिन हमारा इस धरा पर पदार्पण हुआ था. इसीलिए ये दो हमारे लिए  दिन बहुत ही ख़ास हैं , और हमारी गैस चोरी हो गई , बनाएं तो क्या बनाएं ? 
 
अभी - अभी जाकर उनके ब्लॉग में देखा तो पता चला  कि वहां हमारी गैस नहीं है , और ना गैस को चुरा कर लगाने का कोई निशान ....काश कि हम भी टेक्नोलोजी के मास्टर होते तो  उसी समय कौपी  करके या स्नेप लेके अभी मय सबूत के पेश कर रहे होते ....
 
स्लोग ओवर खुशदीप भाई से उधार लेकर.....
विदाई के
 समय माँ अपनी बेटी को रोता देखकर ....
''चुप हो जा बेटी , भगवान् ने चाहा तो तुझे ले जाने वाला खुद रोएगा ''..
 
 दावत के लिए  हमने मेहनत  ब्लोगर साथियों के लिए मीट का इंतजाम किया है , हम घनघोर शाकाहारी हैं .मीटिंग में अलाहाबाद तो ना जा सके लेकिन  तथापि आज मीट अवश्य पकाएंगे ...क्यूंकि गैस वापिस आ गई है  
 
चाय कम  , खर्चे ज्यादा
 बहस कम , चर्चे ज्यादा 
प्रश्न कम , पर्चे ज्यादा
सोए कम, रोए ज्यादा
 पाए कम , खोए ज्यादा 
 
पोस्ट कम मार्टम ज्यादा 
दुःख कम, मातम ज्यादा 
औरत कम , मर्द ज्यादा 
मलहम कम, दर्द ज्यादा
 
 मक्खी कम , मच्छर ज्यादा 
शगुन कम  फ़च्चड़ ज्यादा             
विचार कम आचार ज्यादा
सम्मलेन कम प्रचार ज्यादा
 
 पटाखा कम धमाका ज्यादा
संगम कम मंथन ज्यादा
बेनामी कम सूनामी ज्यादा
परेशानी कम हैरानी ज्यादा
 
 श्रोता कम कुर्सी ज्यादा 
पानी कम बिसलेरी ज्यादा   
दुल्हन कम  स्वयंवर ज्यादा 
ब्लोगर कम नामवर ज्यादा 
 
माइक कम  फाइट ज्यादा 
अतिथी कम   संचालक ज्यादा 
 समीक्षक कम आलोचक ज्यादा 
स्माइल कम , मोबाइल ज्यादा
 
 
टांग कम खिंचाई ज्यादा 
लगाई कम बुझाई ज्यादा
 हाँ हाँ कम, हाहाकार ज्यादा 
कार कम ,पत्रकार ज्यादा
 
 चाट कम ठेला ज्यादा 
मेल कम, मेला ज्यादा 
समय कम, भड़ास ज्यादा
लिखा कम छपास ज्यादा      
 
इस पोस्ट को लगाने से  पहले आकांक्षा जी का माफी का फोन आ चुका है,नई - नई ब्लोगर हैं , जानकारी के
 अभाव में अपनी मित्र द्वारा भेजी गई मेल को अपने ब्लॉग में लगा बैठीं , और इस नाचीज़ का नाम देना भूल गईं ....चलिए जो हुआ सो हुआ ....आप इस मीट  और हमारे विवाह की दो मजेदार फोटुओं का आनंद उठाइए .