गुरुवार, 3 सितंबर 2009

अब सूखे के पीछे हाथ धोकर पड़ गए ...

ईश्वर ने जबसे भारतवर्ष से आती हुई यह आवाज़ सूनी कि ' सूखा राज्य सरकार का विषय है ' और 'पी .एम् .सूखे की चिंता करें ',उनकी भवें क्रोध से तन गईं ,उनहोंने तुंरत सम्मन जारी करके प्रकृती को बुलवा भेजा ,जो भांति - भांति के  बनाव - श्रृंगार करने में व्यस्त थी , क्यूंकि इन दिनों उसके पास काम की बहुत कमी थी , तनखाह भी उसे अब आधी ही मिला करती है ,इस आधी तनखाह को भी वह जस्टिफाई नहीं कर पा रही थी.
 
ईश्वर .....यह मैं क्या सुन रहा हूँ प्रकृति ? जम्बू द्वीप से यह कैसी आवाजें सुनाईं दे रही हैं ?
प्रकृति [ अनजान बनते हुए ] ....कैसी आवाजें महाराज ?
 
ईश्वर ....ज़रा अपने कानों से ये बालों की लटें हटाओ ..तब कुछ सुन पाओगी .ये शरद पवार नामक नेता क्या कह रहा है ?और कोई राजनाथ सिंह भी सूखे को लेकर बहुत चिंताग्रस्त है ?क्या तुमने इस डिपार्टमेंट  का काम देखना भी बंद कर दिया है ?लगता है तुम्हारी तनखाह में और कटौती करनी पड़ेगी ..
 
प्रकृति .....क्षमा महाराज ...लेकिन जितनी आप मुझे तनखाह देते हैं उससे मेरे ब्यूटी पार्लर का खर्चा ही पूरा नहीं पड़ता .
 
ईश्वर ....हम देख रहे हैं आजकल तुम्हारा काम में ज़रा भी मन नहीं लगता, याद करो प्राचीन काल में तुम कितनी कर्तव्यनिष्ठ हुआ करती थीं ,सुबह से शाम तक धरती लोक में घूम - घूम कर हाहाकार मचाया करतीं थी ,तुम्हें बाल तक बनाने की फुर्सत नहीं मिलती थी ,और आज तुम कितनी बदल गयी हो ,लगता है मनुष्य ने तुम्हारे मुँह में भी रिश्वत रूपी खून लगा दिया है .
 
प्रकृति ....महाराज , मैं ही क्यूँ सबके श्रापों की भागीदार बनूँ ? पहले के ज़माने की आप बात क्यूँ करते हैं ?उस ज़माने मैं मैंने अपनी ज़रा भी केयर नहीं करी , हर समय काम में जुटी रहती थी ,कहीं बाढ़ लानी है , कहीं महामारी फैलानी है , कहीं सूखा लाना है ,और उधर अन्य देवियाँ तरह - तरह के बनाव श्रृंगार किया करती थीं , सज -धज के कभी इस लोक तो कभी उस लोक भ्रमण किया करती थीं ,सारे के सारे देवताओं को रम्भा ,उर्वशी ,मेनका नृत्य दिखा -दिखा कर पटाये रखतीं थीं और उनसे  उपहार ,स्वर्णाभूषण प्राप्त किया करतीं थी ,नख से शिख तक अपने को खूबसूरत बनाया करती थी ,लोग उनकी पूजा किया करते थे ,और  आपने लोगों से गाली खाने वाले खराब काम मुझे पकड़ा दिए , ....मैंने काम भी किया और लोगों के श्राप भी झेले ..क्या मिला मुझे इसके बदले ? आये दिन तनखाह में कटौती ?
 
ईश्वर ....लगता है इस  कलयुगी मनुष्य ने तुम्हारी आँखों पर रिश्वत रूपी पट्टी बहुत टाइट बाँध दी है ?
 
प्रकृति .....महाराज ...आप ही बताइए में क्या करती ?ले देकर मेरे पास दो ही डिपार्टमेन्ट बचे थे ..एक बाढ़ और एक सूखा ..उस पर भी अब मेरा नियंत्रण नहीं रहा ,वह जो नेता ऐसा बयान दे रहा है वह भारत सरकार का कृषी मंत्री है ,उसका नाम 'शरद पवार' है उसके पास बहुत पावर है ,दूसरे का नाम 'राजनाथ सिंह' है , जिसके राज में उसकी पार्टी 'आगे नाथ न पीछे पगहा ' वाली हो गयी है जो कल तक गीदड़ भी नहीं थे ,आज सिंह हो गए हैं .
 
और महाराज ! अब सूखा और बरसात हमारे क्रेडिट में नहीं आता है ,अतः इस घमंड को त्याग दे ,अब सूखा कहीं पड़ा होता है ,और प्रभावित दूसरा क्षेत्र दिखा दिया जाता है ,कई लोग इस सूखे की बदौलत सुखी हो जाते हैं ,यही हाल बाढ़ का भी है ,बहती हुई बाढ़ में हाथ धोकर कईयों के छप्पर फट जाते हैं .वह तो भला इस  हो कलयुगी मानव का जिसने मेरी आँखों पर बंधी हुई पट्टी खोल कर मुझे ज्ञान का प्रकाश  दिखाया ..
 
ईश्वर ......और महामारी के बारे में क्या कहती हो ?स्वाइन फ्लू फैलाने का काम तुम्हे सौंपा था ..वह भी नहीं हो पाया तुमसे .
..
प्रकृति ......महाराज ..में क्या करुँ ? मीडिया वालों ने मेरी रोजी -रोटी पर  लात मार दी है .अमेरिका में स्वाइन फ्लू से कोई मरता है तो सारी दुनिया अपने चेहरे पर मास्क लगा लेती है ,'.प्रकृति रोते रोते अपने गालों पर फैल आये आई लाइनर को साफ़ करने लगती है
ईश्वर अपने गालों पर हाथ रखकर गहन चिंतन में डूब जाते है .

आप सबकी आभारी हूँ .

शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में ....आप सभी लोगों ने मेरे नए ब्लॉग 'मास्टरनी - नामा' के प्रति अपना प्रेम प्रर्दशित किया ,उसके लिए मैं आप सबकी आभारी हूँ .
 
आजकल वे लोग भी शिक्षा व्यवस्था को कोसने लगे हैं जिन्हें शिक्षा के असल मायने तक पता नहीं होते . जो स्वयं किसी नैतिकता का पालन नहीं करते ,  वे शिक्षकों के लिए  आचार - संहिता का निर्धारण करने लग गए हैं ,शिक्षकों के लिए  नैतिक मापदंडों का निर्धारण करने वाले ये क्यूँ भूल जाते हैं कि शिक्षक भी उन्हीं के बीच से आया हुआ एक प्राणी है .उसके अन्दर भी एक आम आदमी सांस लेता है . किस क्षेत्र में बुराइयां नहीं हैं ? आज समाज का हर क्षेत्र ,हर तबका जब सांस्कृतिक ,सामाजिक एवं नैतिक अवमूल्यन से गुजर रहा है ,तब  ऐसे में शिक्षकों से आदर्श के प्रतिमान स्थापित करने की अपेक्षा करना कितना उचित है ,यह बात सच है कि बच्चा अपने अध्यापक से बहुत कुछ सीखता है , वह उसका रोल मोडल होता है ,लेकिन यह भी सच है कि शिक्षक के पास बच्चा सिर्फ ५ - ६ घंटे व्यतीत करता है , बाकी  का समय वह अपने माँ -बाप और  परिवार के बीच में  बिताता है ,और उस अवधि में माँ - बाप  बच्चे के अन्दर कौन से संस्कार भरते हैं ,यह भी विचारणीय प्रश्न है और आज के व्यस्त माता -पिता अपने बच्चे को कितना समय देते हैं ? इस बात का भी इमानदारी से जवाब देना होगा, कितने माता पिता ऐसे हैं जो बच्चों को यह सिखाते हैं कि अपने टीचर्स की इज्जत करनी चाहिए, उनकी बात माननी  चाहिए ? इसके उलट हम उनके सामने उनके  टीचर्स के प्रति ज़हर उगलते रहते हैं ,हम बच्चों की कापियों में जान - बूझ कर गलतियां ढूंढते हैं, ताकि किसी ना किसी प्रकार से टीचर को  बेईज्ज़त किया जा सके ,हम ये जानने की कोशिश नहीं करते कि टीचर एक साथ इतने बच्चों को कैसे संभालते होंगे,  हमारी पूरी कोशिश सिर्फ यह जानने की होती है कि हमारे जिगर के टुकड़े को टीचर डांटती  तो नहीं है ,या कभी गलती से भी उसने कभी  हमारे लाडले  मारने की कोशिश तो नहीं की, बच्चे की एक झूठी  शिकायत पर स्कूल और सारे स्टाफ की कर्तव्यनिष्ठा पर प्रश्नचिंह लगाने लग जाते हैं  बच्चे का स्कूल तक बदल दिया जाता है .ऐसे माता - पिताओं की भी कमी नहीं है जो खुद अपने बच्चों को घर पर एक पल के लिए भी संभाल नहीं सकते ,जिनके घरों में  चौबीस में से दस  घंटे टी.वी. पर  कार्टून चैनल  चलता है , कई घरों में तो  बच्चों के लिए एक अलग टी . वी . की भी व्यवस्था है, भांति - भांति के विडियो गेम हैं, क्यूंकि उनके पास एक अकाट्य तर्क है   'क्या करें ,कहना ही नहीं मानता '   लेकिन स्कूल वालों से उनकी ये अपेक्षा रहती है कि वे कोई  ऐसी जादू की झड़ी घुमा  दें कि वह एकदम से अच्छा बच्चा बन जाए ,टॉप करने लग जाए..
शिक्षकों के हाथ से समस्त अधिकार छीन कर, उनके हाथों को बाँध कर उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे बच्चों के प्रति समर्पित रहें , उन्हें अपने बच्चे की तरह समझें , स्नेह दें ,यह कैसे संभव है ? अपने बच्चे को तो इंसान डांटता भी है ,फटकारता भी है  ,और कभी कभार मारता भी  है ,लेकिन टीचर का जोर से बोलना तक  सभी को नागवार गुज़रता है .  ज़रा  सी  गलती पर उसे जेल भिजवाने तक से गुरेज़ नहीं किया जाता है, रात - दिन ऐसी  असुरक्षा के हालात में रहने वाला  शिक्षक किस - किस की अपेक्षाओं को पूर्ण करे ?
इस बात पर चिंतन और मनन करने आवश्यकता है ..