शनिवार, 20 जून 2009

क्यूँ मक्खी ? क्या समझ के आई थी

क्यूँ मक्खी ? क्या समझ के  आई थी  कि ओबामा बहुत खुस होगा ? सबासी देगा ? तुमने सोचा होगा 'वो भी काला, मैं भी काली, दोनों मिल के करेंगे कव्वाली '....प्यारी मक्षिका ! क्यूँ भूल गयी थी कि ये अमेरिका की नाक है ,कोई सरकारी स्कूलों का मिड डे नहीं ,जहाँ जब चाहती  हो , तब गिर पड़ती हो ,और जहाँ बच्चे  प्यार से तुम्हें हटा कर उड़ा देते हैं...अबकी बार तुम गलत जगह पर जाकर बैठ गईं ..  तुम्हें किसी ने बताया नहीं शायद कि ताकत का कोई रंग नहीं होता .
साथियों , महामहिम ने एक मक्खी को क्या मार गिराया ,सारी दुनिया उनके पीछे लग गयी , कहीं पोटा वाले झंडा- बैनर लेकर हाय - हाय कर रहे हैं ,कहीं लोग अचूक निशाने बाजी के लिए अभिनव बिंद्रा से स्वर्ण पदक लेकर उनके गले में डालने के लिए लालायित हुए जा रहे हैं .
जबसे हमने यह सुना हमारे ह्रदय को बहुत आघात लगा ....क्या हमने कभी मक्खी नहीं मारी ? अरे हमने तो इस उम्र तक सिर्फ मक्खियाँ ही मारी हैं ,,स्कूल से लेकर कॉलेज, मायके से लेकर ससुराल ..दूसरा कोई किया ना काम ..फिर भी हमारा हुआ न कोई नाम ....घनघोर अपमान .
किसी ने भी हमें ओलम्पिक के लिए प्रशिक्षित करने की न सोची ..उल्टे हमें हर शहर के नामी गिरामी मनोचिकित्सकों के पास ले जाया गया ..हर आने जाने वाले को , नाते रिश्तेदारों को हमारे इस हुनर के बारे में बताने में हमारे घरवालों ने कोई कसर नहीं छोडी .लोगों ,पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों के कितने ताने सहे  ,कितने उपदेश सुने ..हिसाब रखने में केलकुलेटर  ने भी आखिरकार टर्र टर्र कर दिया .
अंतिम उपाय के रूप में झाड़ फूंक करने वाले को भी बुलाया गया ..हमने उसकी  झाड़ फूंक की प्रक्रिया के दौरान उसी का झाडू लेकर कई मक्खियों को मोक्ष दिलवा दिया ..वह बेचारा अपना झाडू छोड़कर ऐसा भागा कि आज तक वापिस नहीं आया ..
माँ बाप ने हमें तंग आकर भाग्य के भरोसे छोड़ दिया , सोचा कि शायद शादी करके सुधर जाएगी ,लेकिन ससुराल वाले और हमारे पतिदेव ने जब हमारा मक्खी मार अभियान के प्रति प्रेम को देखा तो गश खाकर गिर पड़े ..धीरे धीरे वे समझ गए कि हमसे किसी काम के लिए कहा जाएगा तो पूरा होना मुश्किल है ,,,बंदी को और क्या चाहिए था ...हमारा मक्खी  मार अभियान निर्बाध गति से आगे  बढ़ता  रहा ...
फिर जब हमारी नौकरी लगी तो उनके अन्दर कुछ उम्मीद जगी कि शायद अब ये सुधर जाएगी ..लेकिन सारी दुनिया जानती है कि सरकारी नौकरी में वो भी अध्यापन की , तो कोई  अपने आपको मक्खी मारने से कैसे रोक सकता है ..हमारे इस अभियान को उचित अवसर और परिस्थिति मिल गयी ..और अब तो यह संभावना दिनों दिन प्रबल होती जा रही है हमें आने वाले सालों  में कोई माई का लाल राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त करने से नहीं रोक सकता...
और साथियों ....मातृत्व भी हमारे इस अभियान में बाधक नहीं बन सका ...लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी के बड़े बुजुर्ग जो कहते हैं सही कहते हैं ...कि माँ बनने के बाद औरत की जिम्मेदारियां दुगुनी हो जाती हैं ...पहले हम अपने आस पास की मक्खियों को शहीद किया करते थे अब बच्चे  के आस पास की मक्खियों को भी सदगति दिलानी पड़ती है .
साथियों इतनी से पोस्ट लिखने में १० मक्खियों को जीवन दान मिल गया ............
नोट -----ओनली फॉर पोटा ------इस पोस्ट की सारी बातें काल्पनिक हैं ,इसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है .