शनिवार, 25 अप्रैल 2009

चुनावी क्षणिकाएं ....भाग २

साथियों .....जब तक चुनाव नहीं निपट जाते ...कुछ और लिखना मुश्किल हो रहा है ....रोज़ इतने मसाले मिल जा रहे हैं ...और कोई विषय सूझ ही नहीं रहा ....तो फिर से कुछ और चुनावी क्षणिकाएं हाज़िर हैं ....
 
मजबूरी
 
उनकी,
मजबूरी को लोग
समझ नहीं पाते हैं
उन्हें,
पद का लोलुप
सत्ता का भूखा
बताते हैं
नादान हैं
नहीं जानते
कि वे
देश सेवा
तभी कर पाते हैं
जब
राजनीति में आते हैं
 
 
ग्रेट उपाय
 
झुग्गी में,
झोंपडी में
गरीबों की
बस्ती में
दीन दुखियों
के पास
बंधाने को आस
उनके पास
उपाय है ख़ास
पिघल न जाए कहीं
इस दगाबाज़ दिल का
कतई भरोसा नहीं
इससे निपटने का
परमानेंट
रिज़ल्ट है जिसका
सौ परसेंट
मिल गया उनको
एक उपाय ग्रेट
कमबख्त दिल को ही
करवा डाला
लेमिनेट....