शनिवार, 21 मार्च 2009

अप्प्लम चप्प्लम चप्पल[आई रे].......

अप्प्लम चप्प्लम चप्पल[आई रे].......

संभल कर कदम रखना इधर ऐ कानून वालों ....तुम्हारे पास तराजू,इनके पास चप्पल है

पहले अक्सर यह कहावत सुनने में आती थी कि कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं आज पता चला कि यह बिलकुल झूठी कहावत है.कानून के हाथ लम्बे होते तो क्या वह सिर पर आती हुई चप्पल को रोक न लेता.हाँ इस घटना से इस कहावत की पुष्टि हुई कि कानून अँधा होता है.अब इस दुर [घटना] से सबक लेते हुए माननीयों को यह कानून अवश्य बना लेना चाहिए कि जूते और चप्पल  को अस्त्र-शस्त्र की श्रेणी के समकक्ष माना जाए और कोर्ट परिसर के अन्दर इनको लाना अपराध घोषित हो.माननीय न्यायमूर्ति को शुक्र मनाना चाहिए कि उन स्त्रियों ने चप्पलें ही पहिनी थीं,वर्ना आजकल तो कुछ स्त्रियाँ इतनी नुकीली हील की चप्पलें पहिनतीं है कि आपको बस खट-खट की आवाज़ ही सुनाई देगी,आवाज़ का उद्गम स्थल नहीं दिखाई देगा.पाहिले ये पेंसिल हील कहलातीं थी आजकल इनको आलपिन हील कहा जाता है.ये अगर निशाना साधकर फेंकीं जाएं तो सीधे माथे के आर-पार छेद कर देंगीं,गनीमत है कि अभी महिलाओं की निशाने बाजी सीखने में रूचि कम है. आज ये बात तो मुझे स्पष्ट रूप से समझ में आ गयी कि क्यों अंग्रेजों को दूरदर्शी कहा जाता है  पुरानी फिल्मों को देखती हूँ तो पाती हूँ कि माननीय अपने सिरों के ऊपर एक सफ़ेद रंग का बड़ा सा छल्लेदार विग धारण करते थे,वो इसी तरह की आपातकालीन स्थिति से निपटने का इंतजाम होगा.वैसे इस घटना से माननीयों को कटाई शर्म नहीं आनी चाहिए, बल्कि महामहिम बुश की तरह दिलेरी से यह कहना चाहिए कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा,मन ही मन घर पर पत्नी के हाथ से खाए बेलन से उसकी तुलना करनी चाहिए और शुक्र मानना चाहिए,आइन्दा से सिर पर हेलमेट लगाकर ही अदालत में बैठना चाहिए.

जो भी हो इससे यह सिद्ध होता है कि अब विरोध प्रदर्शन की नई तकनीक इजाद हो चुकी है बैनर, झंडे अब कोने में धूल फांकने को विवश हैं,क्यूंकि इनसे एक तो शारीरिक नुकसान की संभावना कम हो जाती है और विरोध प्रकट करने का मकसद भी पूर्ण हो जाता है.विरोध प्रदर्शन का यह ग्लोबल तरीका अब इरान और चाइना होते हुए भारत पहुँच चुका है.

पुरुष इस मामले में भी महिलाओं से पिछड़ते जा रहे हैं,उनके पास फेंकने के लिए बस काले या भूरे रंग के जूते होते हैं और महिलाएं रंग बिरंगी हाई हील, ब्लोक हील, नूडल स्ट्रेप और पुरुषों के एकाधिकार वाले जूतों पर भी कब्जा जमा चुकीं हैं.

पाहिले के जमाने के पुरुष यह कहा करते थे कि 'तुम्हारे पैर बहुत सुन्दर हैं,इन्हें ज़मीन पर मत रखना,वरना मैले हो जाएंगे'.....आजकल वाही पुरुष यह कहा करता है कि 'तुम्हारे पैर बहुत सुन्दर हैं ,इन्हें हील के अन्दर मत रखना, वर्ना कई लोग घायल हो जाएंगे'. पुराने ज़माने में पुरुष अपने घर की दीवारों पर अपने पराक्रम की निशानियाँ -तलवार,बरछी,भाले और ढाल लटकाया करते थे और हर आने जाने वाले को अपनी बहादुरी के झूठे सच्चे किस्से सुनाया करते थे ,अब चूँकि महिलाएं भी घर खरीदने में बराबर का पैसा देतीं हैं तो ज़ाहिर है कि वो भी समय समय पर शस्त्र के रूप में प्रयोग किए गए अपने जूते चप्पलों को बैठक की दीवारों पर लटकाया करेंगी कि देखो 'इस चप्पल से मैंने अपने पाँचवे नंबर के आशिक का काम तमाम किया था.

मैं भविष्य के सपनों में खो जाती हूँ जब माएं अपनी लड़कियों को विदाई के समय लाल मखमल की पोटली में सबकी नज़रें बचा कर नुकीली हील की चप्पल देगी कि 'बेटी आज से ये अमानत तेरी हुई'.

दुकानदार कुछ इस तरह से कहेंगे 'यह वाली हील लीजिए मैडम, इससे आदमी के सिर पर दो इंच तक छेद किया जा सकता है,और यह मोटी ब्लोंक हील से सिर पर कम से कम आठ टाँके लगते हैं.  

ऊँची हील की टक टक की आवाज़ सुनकर ही पुरुष अपना रास्ता बदल दिया करेंगे.

सरकार छेड़-छाड़ से बचने के लिए महिलाओं के लिए हाई हील की चप्पल पहिनना अनिवार्य कर देगी,पाठ्यक्रम में उन बहादुर महिलाओं के बहादुरी भरे कारनामे जोड़े जाएंगे जिन्होंने चप्पल - जूतों की बदौलत घरेलू और बाहरी दोनों मोर्चों पर जंग फतह की.

अंत में बस यही ख़याल आता है कि सुभद्रा कुमारी चौहान होतीं तो ऐसा कहतीं,

'खूब लड़ी मर्दानी वो तो चप्पल जूतों वाली रानी थी'